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बिहार में लोस चुनाव का बिगूल बजते ही राजनीतिक गलियां गरमाने लगी

राजनीतिक दलों द्वारा राजधानी सेलेकर सुदूरवर्ती क्षेत्रों का दौर लगाना शुरू कर पार्टी के कार्यकलापों को जनता के बीच रख गोलबंद किया जा रहा है। 

पटना : बिहार में लोकसभा चुनाव का बिगूल बजते ही राजनीतिक गलियां गरमाने लगी है। एनडीए का गठबंधन एवं विपक्षी दलों का महागठबंधन करीब एक माह पूर्व ही संकेत दे दिया किइस बार होने वाला लोकसभा का चुनाव में गठबंधन एवं महागठबंधन के बीच साीधा मुकाबला होने वाला है। बीते विधानसभा के चुनाव में यहां गठबंधन एवं महागठबंधन का रूप दिया गया था जिसमें महागठबंधन बिहार की सत्ता हासिल करने में सफलता पायी थी। उस समय एनडीए गठबंधन में भाजपा के साथ लोजपा और रालोसपा थी। वहीं महागठबंधन में राजद, जदयू कांग्रेस शामिल था।

लेकिन इस बार दोनों गठबंधन में हेर-फेर होने के बाद जदयू एनडीए में शामिल हुई तो रालोसपा उपेन्द गुट महागठबंधन के साथ आया। दोनों गठबंधन जीत का दावा तो ठोक रहे हैं लेकिन महागठबंधन में सीट शेयरिंग नहीं होने के कारण प्रदेश की जनता एक बारफिर सोंच में पड़ी है कि पिछले चुनाव में बना महागठबंधन चुनाव के बाद ही समय बाद टूट गया और राज्य में एनडीए गठबंधन की सरकार चल रही है। बिहार के चुनाव में जातिय समीकरण को खास मायने माना जाता है। राजनीति में जाति का दबदबा बनाने को लेकर जातीय सम्मेलन का दौर जारी है। जाति समीकरण के बावजूद चुनाव में हार जीत का मायने रखने वाले सवर्ण भी अपना वर्चस्व बनाने में जुटे हैं।

दलित वोटों पर नजर गड़ाये राजनीतिक दलों ने सवर्णों को मिले 10 प्रतिशत आरक्षण पर चुप्पी साध इस वोट को अपने पक्ष में भुनाना चाह रहे हैं। ऊंट किस करवट लेगा यह तो चुनाव के बाद ही पता चलेगा। लेकिन राजनीतिक दलों द्वारा राजधानी सेलेकर सुदूरवर्ती क्षेत्रों का दौर लगाना शुरू कर पार्टी के कार्यकलापों को जनता के बीच रख गोलबंद किया जा रहा है। वहीं जातिय समीकरणों के अलावे महापुरूषों की जयंती के मार्फत राजनीतिक दल जनता के बीच पैठ बनाने से पीछे हटना नहीं चाहती है।

चुनाव का नतीजा भेज भी हो, लेकिन जनता की निगाहें प्रदेश में इस बार बनी गठबंधनों पर टिकी है। कौन कितनी बाजी मारने में सफलीभूत होता है। राष्ट्रीय राजनीतिक दलों के अलावे क्षेत्रिय राजनीतिक दल विकल्प पार्टी का दावा ठोकते हुए चुनावी समर में कूदने की तैयारी में जुटे हैं। भले ही इनकी पार्टी की पहचान पूरे प्रदेश में न हो, लेकिन सम्मेलनों का आयोजन कर सरकार बनाने में दावा ठोक रहे हैं। थर्ड फ्रंट सीट शेयरिंग को ल ेकर अपने अपने बचानों पर कायम रहते हुए महागठबंधन में जगह नहीं मिलने पर प्रत्याशी $खा करने का दवा ठोकते हुए क्षेत्रों में जनसंपर्क अभियान छेड़ रखा है।

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