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गंगा का कम जलस्तर खोल रहा गंगा स्वच्छता अभियान की पोलः सचिन बेदी

उत्तराखंड जो सम्पूर्ण जगत में देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है और इसे प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल भी कहा जाता है।उत्तराखंड गंगा, यमुना, कोसी, काली नदी एवं शिप्रा जैसी अनेक प्रमुख नदियों का उदगम स्थल होने के साथ-साथ तीर्थ स्थल भी हैं।

हरिद्वार, संजय चौहान (पंजाब केसरी)ः उत्तराखंड जो सम्पूर्ण जगत में देवभूमि के नाम से प्रसिद्ध है और इसे प्रमुख नदियों का उद्गम स्थल भी कहा जाता है।उत्तराखंड गंगा, यमुना, कोसी, काली नदी एवं शिप्रा जैसी अनेक प्रमुख नदियों का उदगम स्थल होने के साथ-साथ तीर्थ स्थल भी हैं। यह समस्त पवित्र नदियां लाखों-करोड़ों लोगों की आस्था की भी प्रतीक मानी जाती है। प्रदेश में रहने वाले तथा बाहर से आने वाले लोगों के द्वारा न तो पर्यावरण के प्रति और न ही यहां की नदियों के प्रति कोई सावधानियां बरती जा रही हैं, जिस कारण यहां की नदियों का अस्तित्व निरंतर खतरे में पड़ता जा रहा हैं। गंगा में कहीं कूड़े के अंबार लगे हुए तो कहीं पर रैलिंग टूटी हुई हैं या कहीं पर रेलिंगो में लगाए गए पाइप ही गायब हैं। गंगा की बदहाल होती जा रही स्थिति पर आम आदमी पार्टी हरिद्वार जिला प्रवक्ता एवं जिलाध्यक्ष लीगल सेल अधिवक्ता सचिन बेदी ने कहा कि उत्तराखंड की प्रमुख नदियों में से एक विश्वविख्यात एवं प्रसिद्ध नदी गंगा नदी है। देवभूमि की प्रमुख नदियों में जिनमें गंगा एक प्रमुख नदी होने के साथ ही लाखों करोड़ों लोगों की आस्था का प्रतीक और केंद्र बिंदु हैं। इस कारण गंगा नदी धार्मिकता के क्षेत्र में अपना विशेष महत्व रखती है। हिन्दू धर्म मान्यता के अनुसार एवं धर्म शास्त्रों में गंगा को मां का दर्जा दिया गया है तथा गंगा को को पाप नाशिनी और मोक्ष दायनि भी कहा गया है। परंतु आज गंगा का पुराना स्वरुप समाप्त होता नजर आ रहा है। इसका ताजा तरीन उदाहरण गंगा का जल स्तर कम होते ही नजर आने लगता हैं। गंगा का जल स्तर कम होते ही लोगों द्वारा प्रवाहित की गई गंदगी और कूड़ा साफ नजर आने लगता है। कहीं-कहीं पर गंगा में ही कूड़े के ढेर जमा हो गए हैं तो कहीं पर गंगा में लगी रैलिंग टूटी हुई है या गायब है जो किसी बड़ी दुर्घटना का सबब बन सकती हैं। यह सब एक गंभीर चिंता का विषय बनता जा रहा है। ऐसी स्थिति को देखकर मन बड़ा व्यथित होता है। गंगा स्वच्छता के नाम पर अनेकों संस्थाएं बनी हुई हैं और गंगा स्वच्छता के अनेकों दावे प्रस्तुत करती हैं, परंतु बावजूद इन सबके गंगा सहित अनेकों नदियों का अस्तित्व लगातार खतरे में पड़ता जा रहा है और वास्तविकता कुछ और ही नजर आती हैं। सवाल यह उठता है कि लाखों करोड़ों रुपए खर्च करने के बावजूद भी आखिर यह संस्थाएं कुछ क्यों नहीं कर पा रही हैं ? इन सभी संस्थाओं के समस्त दावे हवा हवाई साबित होते क्यों नजर आ रहे हैं ? क्या लोगों की लापरवाही की वजह से गंगा का अस्तित्व खतरे में पड़ता जा रहा है?गंगा की ऐसी दयनीय स्थिति को देखकर यह आभास हो गया कि यदि यह सब कुछ इसी प्रकार चलता रहा तो निकट भविष्य में अत्यधिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है। भविष्य में अनेक दुश्वारियां पैदा हो जाएंगी जिनका सामना करना बड़ा कठिन व मुश्किल हो जाएगा। तथा गंगा सहित तमाम नदियों का अस्तित्व बचाना भी बड़ा मुश्किल हो जाएगा। उत्तराखंड वासी हो या यहां आने वाले भक्त श्रद्धालु प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष रूप से नदियों को दूषित करने के लिए जिम्मेदार है। यदि समय रहते इस ओर ध्यान ना दिया गया तो शीघ्र ही इसके गंभीर और अप्रतियाशित परिणाम सामने आएंगे जो हम सबको भुगतने होंगे।

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