बांका : आजादी के पहले, आजादी के बाद और वर्तमान में भी बांका जिला पिछड़ा ही है। आज पिछड़ा होने के चलते आज तक न तो सिंचाई का साधन हो सका और न ही क्षेत्र का विकास हो सका। लेकिन इस बार जनता का फरमान है कि चाहे कोई भी पार्टी हो बाहरी प्रत्याशी को टिकट न देकर केवल और केवल स्थानीय नेताओं को ही टिकट दिया जाये। क्योंकि पार्टी जिस किसी भी बाहरी प्रत्याशी को उतारता है वह अपने लोकसभा का विकास न कर केवल और केवल अपने गृह जिला का विकास चाहता है। ऐसे में क्षेत्र के स्थानीय किसान, मजदूर, व्यवसायी अपने विकास से कोसो दूर रह जाते हैं। इसलिए स्थानीय लोगों ने मन बनाया है कि इस बार चाहे कोई भी राजनीतिक दल हो स्थानीय नेता को ही उम्मीवार बनाये। बिहार में बांका लोकसभा का चुनाव इस बार और दिलचस्प होने वाला है। क्योंकि एनडीए के जदयू उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारने की संभावना है। महागठबंधन में राजद और सीपीआई के बीच उहा-पोह की स्थित है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि बांका लोकसभा क्षेत्र जदयू के खाते में जाने की संभावना है। इसलिए 25 फरवरी को बांका में आयोजित मुख्यमंत्री के कार्यक्रम की तैयारी परवान चढ़ा है।
वैसे वर्तमान में राजद के सांसद जयप्रकाश यादव हैं इसलिए महागठबंधन के राजद भी दावा कर रही हैं। एनडीए उम्मीदवार को शिकस्त देने के लिए सामाजिक समीकरण का आंकलन किया जा रहा है। जानकारी अनुसार महागठबंधन में सीट राजद को मिले या सीपीआई को उम्मीदवारी माय समीकरण से ही होगी। बांका लोकसभा क्षेत्र में वामदलों का भी प्रबुद्ध कुछ विधानसभा क्षेत्र में रहा है जबकि 1957 1962 में इंडिया के नेशनल कांग्रेस की शकुंतला देवी यहां से सांसद चुनी गयी थी तो 1967 में भारतीय जनसंघ के वी. एस. शर्मा यहां से जीत हासिल की थी। बाद के दिनों में फिर से 1971 में इंडिया नेशनल कांग्रेस के शिव चन्द्रिका प्रसाद ने जीत दर्ज की थी। जबकि जनता पार्टी से 1973 में तथा भारतीय लोक दल से मधुलिमय जी ने परचम फहराया, फिर 1980 में चंद्रशेखर सिंह 1984 में मनोरमा सिंह,1985 में फिर चन्द्रशेखर सिंह तथा 1986 में मनोरमा सिंह ने दोबारा जीत दर्ज कर सांसद बनी रही। लेकिन समय ने करवट ली और 1989 तथा 1991 में जनता दल से प्रताप सिंह सांसद चुने गए जबकि इस क्षेत्र में दो बार 1996 तथा 2004 में गिरधारी यादव एक बार जनता दल से चुने गये। वहीं दिग्विजय सिंह 1998 तथा 2009 में कभी समता पार्टी तो कभी जनता दल यूनाइटेड व निर्दलीय लडक़र सदन तक पहुंचे थे।
इनके उपरांत इनकी पत्नी पुतुल कुमारी देवी 2010 में निर्वाचित हो सदन की शोभामान रही। इसके बाद 2014 में यहां से जयप्रकाश यादव सांसद चुने गए। मौजूदा राजद सांसद जयप्रकाश यादव के दोबारा प्रत्याशी बनाए जाने की चर्चा है जबकि सीपीआई के संजय यादव के नाम की भी चर्चा है वैसे एनडीए में कई नामों की चर्चा हो रही है जिनमें प्रमुख है भाजपा की पुतुल देवी, जदयू के गिरधारी यादव, मनोज यादव, कौशल कुमार सिंह आदि। लेकिन नामों के चर्चा करने से पहले यह चर्चा हो रही है यह सीट जदयू के खाते में जा रही है ऐसे हालात में क्या जदयू यहां से दोबारा पिछड़ी जाति के दामोदर रावत को उम्मीदवार बनाती है या राजपूत के खाते में यह सीट जा रही है। पुतुल देवी भी बांका सीट पर जोर लगाई हुई है। वैसे भी अब तक के चुने गए सांसदों मे सबसे अधिक वर्चस्व राजपूत उम्मीदवारों का रहा है। वैसे अगर यहां राजपूत को उम्मीदवार नहीं बनाया जाता है तो वैसी हालात में इस क्षेत्र के स्वर्ण मतदाता तितर वितर हो जायेगें और राजद उम्मीदवार जयप्रकाश यादव का रास्ता साफ हो जाएगा।
महागठबंधन का उम्मीदवार जहां साफ नजर आ रहा है वही एनडीए के तरफ से धुंधली तस्वीर नजर आ रही है इसके कई कारण है। सर्वप्रथम अंग किसान मोर्चा के संस्थापक कौशल सिंह ने स्थानीय उम्मीदवार को लेकर जहां एक मोर्चा खोल जिले भर में हस्ताक्षर अभियान चला 1 लाख 64 हजार 499 लोगों से संपर्क कर स्थानीय उम्मीदवारी को लेकर हस्ताक्षर करवाया तथा स्वयं जदयू के प्रबल दावेदार के रूप में सामने खड़े है तो वहीं दूसरी तरफ पुतुल देवी भाजपा की उम्मीदवारी को लेकर अड़ी हुई है। वैसे राजनीतिक पंडितों के मानना है कि बिहार में भाजपा को वर्तमान में 22 सीट है। जिसमें से 5 सीट भाजपा को छोडऩा है तो हारे हुए बांका की सीट पर क्या भाजपा अपनी उम्मीदवारी देगी या भाजपा की पुतुल देवी को ही जदयू के उम्मीदवार के रूप में पेश करेगी।
वहीं कयास लगया जा रहा है कि विगत तीन माह से बांका जिला में अंग किसान मोर्चा के संस्थापक कौशल कुमार सिंह के द्वारा किसानों के लिए चलाये गए हस्ताक्षर अभियान, बीज वितरण, किसान समारोह सहित अन्य कार्यक्रम को लेकर किसानों में अपनी अलग पहचान बनाते हुए बांका लोकसभा सीट के स्थानीय उम्मीदवार के साथ साथ राजपूत जाति के होने के कारण जदयू की ओर से प्रबल दावेदारी मानी जा रही है।