राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि हमें किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करना है बल्कि जीना सिखाना है। इसके साथ ही उन्होंने देश को ‘विश्व गुरु’ बनाने के लिए साथ मिलकर चलने का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि ‘कलियुग’ में हमेशा कमजोर का शोषण होता है।
शुक्रवार को छत्तीसगढ़ में मुंगेली जिले के मदकू द्वीप में घोष शिविर के समापन समारोह को संबोधित करते हुए आरएसएस प्रमुख ने कहा, ‘‘हम सभी को अपने पूर्वजों के उपदेशों को स्मरण करना है। हमारे पूर्वजों के पुण्य का स्मरण करा देने वाले इस क्षेत्र में संकल्प लेना है कि संपूर्ण विश्व को शांति सुख प्रदान करा देने वाला विश्वगुरु भारत गढ़ने के लिए हम सुर में सुर मिलाकर एक ताल में कदम से कदम मिलाकर सौहार्द और समन्वय के साथ आगे बढ़ेंगे।’’
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उन्होंने कहा, ‘‘सत्यमेव जयते नानृतम्। सत्य की ही जीत होती है, असत्य की नहीं। झूठ कितनी भी कोशिश कर लेकिन झूठ कभी विजयी नहीं होता है। उन्होंने कहा, हमें किसी का धर्म परिवर्तन नहीं करना है बल्कि जीना सिखाना है। हम पूरी दुनिया को ऐसा सबक देने के लिए भारत भूमि में पैदा हुए हैं। हमारा पंथ किसी की भी पूजा पद्धति को बदले बिना अच्छा इंसान बनाता है।
मोहन भागवत ने कहा, विविधता में एकता है और एकता में विविधता है। भारत ने कभी किसी का बुरा नहीं चाहा। पूर्व में हमारे पूर्वज यहां से पूरी दुनिया में गए और उन्होंने वहां के देशों को अपना धर्म (सत्य) दिया। लेकिन हमने कभी किसी को बदला नहीं, जो जिसके पास था उसे उसके पास ही रहने दिया। हमने उन्हें ज्ञान दिया, विज्ञान दिया, गणित और आयुर्वेद दिया तथा उन्हें सभ्यता सिखाई। इसलिए हमारे साथ लड़ने वाले चीन के लोग भी यह कहते हुए नहीं सकुचाते कि भारत ने 2000 वर्ष पूर्व ही चीन पर अपनी संस्कृति का प्रभाव जमाया था, क्योंकि उस प्रभाव की याद ही सुखद है दुखद नहीं है।’’
दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल
आरएसएस प्रमुख ने कहा कि दुनिया उसी को पीटती है जो दुर्बल है। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि दुर्बलता ही पाप है। बलशाली का मतलब है संगठित होना। अकेला व्यक्ति बलशाली नहीं हो सकता है। कलयुग में संगठन ही शक्ति मानी जाती है। हम सभी को साथ लेकर चलेंगे, हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है।