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संतों ने की कुंभ को कोविड-19 के मामलों में वृद्धि से जोड़े जाने की निंदा, कहा- यह परंपराओं का अपमान है

अनेक हिंदू संतों ने हरिद्वार में हाल ही में आयोजित कुंभ मेले को कोविड-19 के मामलों में बढ़ोतरी से जोड़ने के प्रयासों की आलोचना की और कहा कि यह जनता के विश्वास और परंपराओं का अपमान है।

अनेक हिंदू संतों ने हरिद्वार में हाल ही में आयोजित कुंभ मेले को कोविड-19 के मामलों में बढ़ोतरी से जोड़ने के प्रयासों की बुधवार को आलोचना की और कहा कि यह जनता के विश्वास और परंपराओं का अपमान है। उन्होंने यह दावा भी किया कि उत्तराखंड में कुंभ के समय संक्रमण के मामलों में अधिक बढ़ोतरी नहीं देखी गई।
संतों ने किसी राजनीतिक दल का नाम नहीं लिया, लेकिन एक दिन पहले ही भाजपा ने कांग्रेस पर महामारी की दूसरी लहर को लेकर नरेंद्र मोदी सरकार पर निशाना साधने और कुंभ आयोजन के फैसले को संक्रमण के मामलों में बढ़ोतरी से जोड़ने के लिए ‘टूलकिट’ तैयार करने का आरोप लगाया था।
कांग्रेस ने आरोपों को खारिज कर दिया और भाजपा के वरिष्ठ नेताओं पर फर्जी दस्तावेज पेश करने का आरोप लगाते हुए पुलिस में शिकायत दर्ज कराई। जूना अखाड़ा के महामंडलेश्वर स्वामी अवधेशानंद गिरि ने कहा कि कुंभ भारत के मूल्यों, संस्कृति और उसकी संवेदनाओं को प्रतिबिंबित करता है और इसे कोविड-19 के मामलों में इजाफे से जोड़ने का प्रयास इन मूल्यों पर हमले के समान है। उन्होंने कहा कि यह लोगों की संकीर्ण मानसिकता को दर्शाता है।
योगगुरू रामदेव ने एक संदेश में कहा कि यह टूलकिट बनाकर कुंभ मेला को और प्राचीन हिंदू धर्म को अपमानित करने का बड़ा षड्यंत्र है। यह बड़ा अपराध है। उन्हें 100 करोड़ से अधिक लोगों का अपमान करना बंद कर देना चाहिए तथा लोगों को इस तरह की हिंदू-विरोधी, भारत-विरोधी ताकतों का बहिष्कार और विरोध करना चाहिए।
स्वामी अवधेशानंद ने दावा किया कि आंकड़े दर्शाते हैं कि उत्तराखंड में कुंभ के आयोजन के दौरान कोविड-19 के मामलों में इजाफा नहीं हुआ, जबकि दूसरे राज्यों में संख्या बढ़ गई। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आग्रह पर कुंभ को प्रतीक स्वरूप आयोजित किया गया। हम संत कुंभ के खिलाफ इस दुष्प्रचार अभियान की पुरजोर निंदा करते हैं। इस तरह की राजनीति करना सही नहीं है।
एक और संत स्वामी कैलाशानंद गिरि ने कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि लोग कुंभ को महामारी के मामलों में वृद्धि से जोड़ रहे हैं। उन्होंने कहा कि आम तौर पर कुंभ में करोड़ों लोग शामिल होते हैं लेकिन इस बार लाखों की संख्या में भी लोग नहीं आए और पूरा आयोजन व्यापक रूप से प्रतीकात्मक रहा।

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