सुप्रीम कोर्ट ने 23 वर्षीय एक जैन महिला की इच्छा को प्रधानता दी जिसमें उसने कहा कि वह अपने पति की जगह अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती है। उसके पति ने महिला से शादी करने के लिये इस्लाम कथित तौर पर त्याग कर हिंदू धर्म अपना लिया था। प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने छत्तीसगढ़ पुलिस को निर्देश दिया था कि वह महिला को सोमवार को उसके समक्ष बातचीत के लिये पेश करे।
अदालत ने महिला की इच्छा जानने के लिए हिंदी में उससे कुछ सवाल किए। पीठ ने उससे कई सवाल किये, जैसे ‘उसका क्या नाम है’, ‘क्या आपकी शादी वाकई हुई’ और ‘आप अपने पति के साथ क्यों नहीं रहना चाहती हैं’। महिला ने सवालों का जवाब देते हुए कहा कि वह बालिग है और उसे किसी ने मजबूर नहीं किया है और यद्यपि उसने मोहम्मद इब्राहिम सिद्दीकी उर्फ आर्यन आर्य से शादी की, लेकिन वह स्वेच्छा से अपने माता-पिता के साथ रहना चाहती है।
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पीठ ने उसके स्पष्ट बयान पर विचार किया और उच्च न्यायालय के आदेश में संशोधन किया जिसमें कहा गया था कि या तो वह अपने माता-पिता के साथ रहे या हॉस्टल में रहे और अदालत ने उसे सीधा अपने माता-पिता के घर जाने की अनुमति दे दी थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि वह विवाह की वैधता पर विचार नहीं करेगी क्योंकि इसपर सक्षम अदालत विचार करेगी।
महिला के बयानों पर गौर करने के बाद अदालत ने कहा, ”उसने स्पष्ट रूप से कहा है कि वह अपने पति के साथ जाना नहीं जाना चाहती है और अपने माता-पिता के पास वापस जाना चाहती है। इसके मद्देनजर हम उसे अपने माता-पिता के पास वापस जाने की अनुमति देते हैं।”
पीठ ने कहा, ”हम शादी पर टिप्पणी नहीं करना चाहते हैं। चूंकि वह बालिग है इसलिये उसे अपना फैसला करने का हक है कि वह कहां जाना चाहती है।” छत्तीसगढ़ सरकार की तरफ से महाधिवक्ता जुगल किशोर ने दलीलें रखीं। इससे पहले, मोहम्मद इब्राहिम सिद्दीकी उर्फ आर्यन आर्य ने शीर्ष अदालत में याचिका दायर करके अपनी पत्नी को उसके माता-पिता के संरक्षण से आजाद कराने की मांग की थी।