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मुंबई में तटीय सड़क परियोजना की मंजूरी रद्द करने के खिलाफ 20 अगस्त को सुनवाई SC करेगा

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस परियोजना के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं और इसमें समुचित वैज्ञानिक अध्ययन का अभाव है।

सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को कहा कि बृहन्न मुंबई नगर निगम की महत्वाकांक्षी तटीय सड़क परियोजना को तटीय नियमन क्षेत्र की मंजूरी निरस्त करने के बंबई हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने के लिए दायर याचिकाओं पर 20 अगस्त को सुनवाई करेगा। 
प्रधान न्यायाधीश रंजन गोगोई और न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता की पीठ ने वृहन्न मुंबई नगर निगम, लार्सन एंड टूब्रो लि तथा एचसीसी एचडीसी जेवी की अपीलों पर सुनवाई के दौरान अंतरिम राहत के मुद्दे पर नोटिस जारी किया और कहा कि इस मामले में 20 अगस्त को विचार किया जाएगा। 
सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में मछुआरों की एसोसिएशन, कार्यकर्ताओं और उन निवासियों से जवाब मांगा है जिनकी याचिका पर हाई कोर्ट ने 16 जुलाई को 14,000 करोड़ रूपए की महत्वाकांक्षी तटीय सड़क परियोजना को तटीय नियमन क्षेत्र द्वारा दी गयी मंजूरी निरस्त कर दी थी। 
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस परियोजना के लिए निर्णय लेने की प्रक्रिया में गंभीर खामियां हैं और इसमें समुचित वैज्ञानिक अध्ययन का अभाव है। नगर निगम की ओर से सालिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि तटीय नियमन क्षेत्र की मंजूरी अविवादित भूमि के लिए दी गयी थी। 
हालांकि, पीठ ने नोटिस जारी करते हुए कहा कि वह संबंधित पक्षों को सुनेगी। हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि बृहन्न मुंबई नगर निगम 29.2 किलोमीटर लंबी सड़क बनाने की इस परियोजना पर काम नहीं कर सकता है। इस परियोजना के माध्यम से दक्षिण मुंबई के मरीन ड्राइव को उत्तरी मुंबई के उपनगर बोरीवली से जोड़ा जाना है। 
हाई कोर्ट ने यह भी कहा था कि इस परियोजना के लिए केंद्र द्वारा जारी पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत नगर निगम को पर्यावरणीय मंजूरी लेना जरूरी है। इससे पहले, अप्रैल महीने में हाई कोर्ट ने बृहन्न मुंबई नगर निगम को इस परियोजना पर आगे काम करने से रोक दिया था लेकिन मई महीने में सुप्रीम कोर्ट ने वर्तमान काम करते रहने की अनुमति दे दी थी। 
साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट से इस मामले पर अंतिम सुनवाई करने का आग्रह किया था। हाई कोर्ट में नगर निगम की इस परियोजना को चुनौती देने वाले याचिकाकर्ताओं का तर्क था कि यह तटीय सीमा को नुकसान पहुंचाने के साथ ही समुद्री जीवन और मछुआरों की आजीविका को भी प्रभावित करेगा। 

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