महाराष्ट्र सरकार ने मंगलवार को बंबई हाई कोर्ट से कहा कि राज्य में निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में सभी बिस्तरों के लिये शुल्क की ऊपरी सीमा तय करना उसके लिये व्यवहार्य नहीं होगा।
महाधिवक्ता आशुतोष कुंभकोणी ने न्यायमूर्ति अमजद सैयद की अध्यक्षता वाली पीठ से कहा कि राज्य सरकार ने निजी अस्पतालों और नर्सिंग होम में 80 प्रतिशत बिस्तरों के लिये व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) किट सहित अनुषंगी वस्तुओं के लिये शुल्क की ऊपरी सीमा तय कर रखी है।
उन्होंने कहा कि हालांकि, अस्पतालों को कोविड-19 एवं अन्य मरीजों के उपचार के लिये शेष 20 प्रतिशत बिस्तरों के लिये शुल्क लेने को कहा गया है। कुंभकोणी ने कहा, ‘‘हम निजी अस्पतालों को पूरी तरह से अपने नियंत्रण में नहीं ले सकते। सभी बिस्तरों के लिये शुल्कों का नियमन करना, इस तरह से उन पर नियंत्रण करना व्यवहार्य नहीं होगा और राज्य सरकार उन्हें कोई सहायता भी उपलब्ध नहीं करा रही है।’’
उन्होंने दलील दी, ‘‘यदि हम सभी चीजों का नियमन करेंगे तो यह राष्ट्रीयकरण (अस्पतालों का) करने जैसा होगा।’’ उल्लेखनीय है कि अदालत ने राज्य सरकार से यह जानना चाहा था कि कोविड-19 महामारी के दौरान मरीजों से अधिक शुल्क लिये जाने को रोकने के लिये क्या उसके (राज्य सरकार के) पास कोई व्यवस्था है ? अदालत, अधिवक्ता अभिजीत मानगडे की एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही है।
याचिका में कहा गया है कि कुछ निजी अस्पताल कोविड-19 के मरीजों और अन्य से पीपीई किट, दस्ताने और एन-95 मास्क के लिये अधिक शुल्क वसूल रहे हैं। उन्होंने मंगलवार को अदालत से कहा था कि उनकी मां को जून में शहर के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां छह दिनों के लिये पीपीई किट के 72,000 रुपये लिये गये थे। बहरहाल, अदालत ने मामले की सुनवाई एक सप्ताह के लिये स्थगित कर दी और कहा कि इसकी सुनवाई मुख्य न्यायाधीश की अदालत करेगी।