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राज्यपाल कोश्यारी को बेलगाम विवाद पर अपने कर्नाटक समकक्ष से बात करनी चाहिए : शिवसेना

‘सामना’ के संपादकीय में आरोप लगाया गया कि पिछले 60 वर्षों से कर्नाटक में संबंधित क्षेत्रों में मराठी लोगों, भाषा और संस्कृति पर “क्रूर हमले” किए जा रहे हैं और ‘काला दिवस’ मनाया जाना उसी की प्रतिक्रिया है।

शिवसेना ने सोमवार को कहा कि महाराष्ट्र के राज्यपाल भगत सिंह कोश्यारी को अपने कर्नाटक के समकक्ष से दक्षिणी राज्य के बेलगाम जिले में मराठी भाषी लोगों के साथ कथित तौर पर होने वाले ‘‘अत्याचार’’ के बारे में ‘‘कड़े शब्दों में’’ बात करनी चाहिए। शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ में एक संपादकीय में कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री लक्ष्मण सावदी की उस कथित टिप्पणी पर भी निशाना साधा गया कि जब तक सूरज और चांद का अस्तित्व रहेगा, बेलगाम तब तक कर्नाटक का हिस्सा रहेगा। 
इसमें कहा है कि महाराष्ट्र और कर्नाटक के बीच सीमा विवाद (बेलगाम और अन्य सीमावर्ती क्षेत्रों में) सुप्रीम कोर्ट के समक्ष लंबित है और वह यह देखकर अपना फैसला नहीं सुनाएगा कि आसमान में सूर्य और चंद्रमा मौजूद हैं या नहीं। महाराष्ट्र बेलगाम पर भाषायी आधार पर दावा करता है लेकिन यह वर्तमान में कर्नाटक का एक जिला है जो कि पूर्ववर्ती ‘बॉम्बे प्रेसीडेंसी’ का हिस्सा था। 
रविवार को महाराष्ट्र के कैबिनेट मंत्रियों ने बेलगाम के उन मराठी भाषी लोगों के साथ एकजुटता व्यक्त करने के लिए काली पट्टी बांधी जो एक नवंबर को कर्नाटक के स्थापना दिवस को ‘‘काले दिवस’’ ​​के रूप में मनाते हैं। ‘सामना’ के संपादकीय में आरोप लगाया गया कि पिछले 60 वर्षों से कर्नाटक में संबंधित क्षेत्रों में मराठी लोगों, भाषा और संस्कृति पर ‘‘क्रूर हमले’’ किए जा रहे हैं और ‘काला दिवस’ मनाया जाना उसी की प्रतिक्रिया है। 
इसमें कहा है कि बेलगाम विवाद को छोड़कर, दोनों राज्यों में अन्य राज्यों की तुलना में मजबूत सामाजिक, सांस्कृतिक और व्यापार संबंध हैं, लेकिन जिस ‘‘क्रूर तरीके’’ से कर्नाटक में 20 लाख मराठी भाषी लोगों के साथ व्यवहार किया जाता है, उससे आक्रोश उत्पन्न होता है। इसमें लिखा है, ‘‘महाराष्ट्र के राज्यपाल को अपने कर्नाटक के समकक्ष से इन अत्याचारों के बारे में कड़े शब्दों में बात करनी चाहिए। कम से कम, उन्हें बेलगाम के प्रतिनिधिमंडल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलने का समय दिलाने में मदद करने की कोशिश करनी चाहिए।’’ 
संपादकीय में आगे कहा गया है कि सावदी जैसे मंत्रियों को यह नहीं भूलना चाहिए कि कर्नाटक के लाखों लोग महाराष्ट्र में व्यवसाय कर रहे हैं और खुशी से रह रहे हैं। रविवार को काली पट्टी बांधे महाराष्ट्र के मंत्रियों का उल्लेख करते हुए संपादकीय में कहा गया है कि यदि भाजपा और राज्य के अन्य दलों के नेता विरोध में शामिल हुए होते तो कर्नाटक के नेताओं को इस मुद्दे पर राज्यों की एकता का पता चला होता। 
भाजपा नेता देवेंद्र फडणवीस और प्रवीण दरेकर का नाम लिए बगैर, इसमें कहा गया है कि कम से कम महाराष्ट्र विधानसभा और विधान परिषद में विपक्ष के नेता ‘‘लोगों की भावनाओं’’ का सम्मान करने के लिए काली पट्टी लगा सकते थे। संपादकीय में लिखा है कि भाजपा कर्नाटक में सत्ता में है और अगर वहां मराठी भाइयों के खिलाफ ‘‘अत्याचार’’ किए जा रहे हैं तो महाराष्ट्र में पार्टी के नेताओं का दिल ‘‘आंसुओं से भरना चाहिए।’’ 
सामना के संपादकीय में लिखा है, ‘‘ऐसा क्यों नहीं हुआ, केवल वे ही जानते हैं…यह प्रकाशित हुआ है कि चंद्रकांत दादा पाटिल (महाराष्ट्र भाजपा प्रमुख) ने कहा कि बेलगाम और मराठी भाषी लोगों के अन्य गांवों को महाराष्ट्र में शामिल किया जाना चाहिए। यह कहने के लिए पाटिल का धन्यवाद।’’ 

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