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कंगना को शिवसेना का जवाब- हर किसी ने मुंबई को माना कर्मभूमि, पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर नहीं करते

सामना में कहा गया है कि “मुंबई पीओके है कि नहीं, यह विवाद जिसने पैदा किया है उसी को मुबारक। मुंबई के हिस्से में अक्सर यह विवाद आता रहता है।”

शिवसेना ने अपने मुखपत्र ‘सामना’ में कंगना रनौत के पीओके वाले बयान को लेकर जमकर निशाना साधा है। हालांकि उन्होंने कंगना के नाम का जिक्र नहीं किया है।  मुखपत्र में कई दिग्गज फ़िल्मी अभिनेताओं का जिक्र करते हुए कहा है कि हर किसी ने मुंबई को अपनी कर्मभूमि माना और मुंबई को बनाने और संवारने में योगदान दिया न कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर किया या खुद कांच के घर में रहकर दूसरों के घर पर पत्थर फेंका।
सामना में कहा गया है कि “मुंबई पीओके है कि नहीं, यह विवाद जिसने पैदा किया है उसी को मुबारक। मुंबई के हिस्से में अक्सर यह विवाद आता रहता है। लेकिन इन विवाद माफियाओं की फिक्र न करते हुए मुंबई महाराष्ट्र की राजधानी के रूप में प्रतिष्ठित है। सवाल सिर्फ इतना है कि कौरव जब दरबार में द्रौपदी का चीरहरण कर रहे थे, उस समय सारे पांडव अपना सिर झुकाए बैठे थे। उसी तरह का दृश्य इस बार तब देखने को मिला जब मुंबई का वस्त्रहरण हो रहा था।”
सामना में कहा कि शिवसेना प्रमुख बाला साहेब ठाकरे हमेशा कहते थे कि देश एक है और अखंड है। राष्ट्रीय एकता तो है ही लेकिन राष्ट्रीय एकता का ये बोलबाला हमेशा मुंबई-महाराष्ट्र के बारे में ही क्यों बजाया जाता है? राष्ट्रीय एकता की ये बात अन्य राज्यों के बारे में क्यों लागू नहीं होती? शिवसेना ने कहा कि विवाद खड़ा किया जाता है सिर्फ मुंबई को लेकर। इसमें एक प्रकार का राजनीतिक पेट दर्द ही है। मुंबई महाराष्ट्र की है और रहेगी।
शिवसेना ने कहा कि संविधान के जनक डॉ. आंबेडकर ने डंके की चोट पर ऐसा कहा है कि मुंबई सहित संयुक्त महाराष्ट्र की लड़ाई में वे प्रबोधनकार ठाकरे के साथ कंधे से कंधा मिलाकर लड़ने के लिए उतरे लेकिन जिनका डॉ. आंबेडकर के विचारों से कौड़ी का भी लेना-देना नहीं है, ऐसे दिखावटी अनुयायी हवाई अड्डे पर महाराष्ट्र द्वेषियों का स्वागत करने के लिए नीले रंग का झंडा लेकर हंगामा करते हैं। यह तो आंबेडकर का सबसे बड़ा अपमान है। शिवसेना ने कहा कि मुंबई को कम आंकना मतलब खुद-ही-खुद के लिए गड्ढा खोदने जैसा है। महाराष्ट्र संतों-महात्माओं और क्रांतिकारों की भूमि है।

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