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‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता…’ सामना के जरिए शिवसेना का फडणवीस पर तंज

महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो चुकी शिवसेना ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोला है। शिवसेना ने कहा कि एक नाटक रचा गया, जिसका मुख्य उद्देश्य शिवसेना में विद्रोह पैदा करना और महाराष्ट्र की सत्ता को हथियाना था।

महाराष्ट्र की सत्ता से बाहर हो चुकी शिवसेना ने मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उप मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस पर हमला बोला है। शिवसेना ने कहा कि एक नाटक रचा गया, जिसका मुख्य उद्देश्य शिवसेना में विद्रोह पैदा करना और महाराष्ट्र की सत्ता को हथियाना था। वहीं फणडवीस पर तंज कसते हुए शिवसेना ने कहा कि मुख्यमंत्री बनने की भावना लेकर चलने वाले को उपमुख्यमंत्री पद स्वीकार करना पड़ा।
शिवसेना ने अपने मुखपत्र “सामना ” एक एक लेख में फडणवीस पर तंज कसते हुए लिखा, इस ‘क्लाइमेक्स’ पर टिप्पणी, समीक्षा, परीक्षण की भरमार होने के दौरान ‘बड़ा मन’ और ‘पार्टी के प्रति निष्ठा का पालन’ ऐसा एक बचाव सामने आया। फडणवीस ने मन बड़ा करके मुख्यमंत्री के पद की बजाय उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार किया’, ऐसा तर्क भी दिया जा रहा है।
शिवसेना ने फणडवीस पर कटाक्ष करने के लिए अटल बिहारी वाजपेयी की एक कविता का सहारा लिया। शिवसेना ने लिखा…
‘छोटे मन से कोई बड़ा नहीं होता, टूटे मन से कोई खड़ा नहीं होता…
लेकिन इन पंक्तियों से पहले इसी कविता में वाजपेयी कहते हैं-
हिमालय की चोटी पर पहुंच,
एवरेस्ट विजय की पताका फहरा,
कोई विजेता यदि ईर्ष्या से दग्ध,
अपने साथी से विश्वासघात करे
तो उसका क्या अपराध 
इसलिए क्षम्य हो जाएगा कि
वह एवरेस्ट की ऊंचाई पर हुआ था?
नहीं, अपराध अपराध ही रहेगा 
हिमालय की सारी धवलता
उस कालिमा को नहीं ढक सकती!’  
काले और सफेद का एक नया युग
शिवसेना ने आगे लिखा, सबसे चौंकाने वाला क्लाइमेक्स तब आया जब गुरुवार शाम को राजभवन में नाटक की आखिरी रिहर्सल हुई। जो उपमुख्यमंत्री बनते, वे अचानक मुख्यमंत्री बन गए और जो सोचते थे कि वह मुख्यमंत्री बनेंगे, उन्हें उपमुख्यमंत्री का पद स्वीकार करना पड़ा। काले और सफेद का एक नया युग आ गया है। यही कारण है कि ‘छोटे दिमाग’ और ‘बड़े दिमाग’ को फिर से परिभाषित किया जा रहा है। अगर भाजपा ने ढाई साल पहले समझौते के अनुसार अपनी बात रखने के लिए ‘बड़ा दिल’ दिखाया होता, तो पार्टी के लिए रक्षा के रूप में ‘बड़े दिमाग’ की ढाल लगाने का समय नहीं आता।
लगा कि यह ड्रामा खत्म हो जाएगा, लेकिन…
लेख में तंज कसते हुए कहा गया है कि ऐसा ही तब हुआ जब एक पर्दा गिरा या कोई पर्दे पर ही गिर गया। साथ ही तथाकथित ‘महाशक्तियां’, जो इस पूरे राजनीतिक नाटक के पर्दे के पीछे थीं, वो बीच में ही उजागर हो गईं। कम से कम उसके बाद कुछ लोगों को लगा कि यह ड्रामा खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा होता नहीं दिख रहा है। इसके विपरीत ऐसा लगता है कि इस नाटक पर और अधिक काम किया जा रहा है।

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