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अमरावती भूमि घोटाला : मीडिया रिपोर्टिंग पर प्रतिबंध के हाई कोर्ट के आदेश पर SC ने लगाई रोक

सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 15 सितंबर के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया।

अमरावती जमीन घोटाले को लेकर दर्ज प्राथमिकी के बारे में खबरें प्रकाशित करने पर प्रतिबंध लगाने संबंधी आंध्र प्रदेश हाई कोर्ट के आदेश पर सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को रोक लगा दी। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के अन्य निर्देशों पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया। 
न्यायमूर्ति अशोक भूषण, न्यायमूर्ति आर सुभाष रेड्डी और न्यायमूर्ति एम आर शाह की पीठ ने कहा कि राज्य की राजधानी अमरावती के स्थानांतरण के दौरान जमीन के कथित अवैध सौदों के बारे में लंबित मामले में हाई कोर्ट जनवरी के अंतिम सप्ताह तक फैसला नहीं करेगा। पीठ ने इस मामले में दर्ज एफआईआर में जांच पर रोक लगाने सहित हाई कोर्ट के अन्य निर्देशों पर फिलहाल रोक लगाने से इंकार कर दिया। 
सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के 15 सितंबर के आदेश के खिलाफ आंध्र प्रदेश सरकार की अपील पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। सुप्रीम कोर्ट ने हालांकि इस अपील पर मुख्यमंत्री वाई एस जगन मोहन रेड्डी को नोटिस जारी नहीं किया लेकिन उसने राज्य के पुलिस महानिदेशक और पूर्व महाधिवक्ता दम्मालपति श्रीनिवास, जिनकी याचिका पर हाई कोर्ट ने आदेश दिया था, सहित अन्य से जवाब मांगे हैं। 
पीठ ने इस मामले को अब जनवरी में सुनवाई के लिए सूचीबद्ध किया है। वाई एस जगन मोहन रेड्डी सरकार ने 21 फरवरी को पुलिस उप महानिरीक्षक रैंक के आईपीएस अधिकारी की अध्यक्षता में एक विशेष जांच दल गठित किया था जसे चंद्रबाबू नायडू सरकार के कार्यकाल के दौरान अमरावती राजधानी क्षेत्र में कथित अनियमित्तओं, विशेषकर भूमि के मामले में, की व्यापक जांच करनी थी। 
वीडियो कांफ्रेंस के माध्यम से इस याचिका पर सुनवाई के दौरान आंध्र प्रदेश सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राजीव धवन ने दलील दी कि हाई कोर्ट को ऐसा नहीं कहना चाहिए था कि इस मामले में कोई जांच नहीं होगी। उन्होंने कहा कि हाई कोर्ट को यह आदेश देने चाहिए थे कि कोई भी दंडात्मक कार्रवाई नहीं की जाए और मीडिया के रिपोर्टिंग करने पर प्रतिबंध भी नहीं लगाया जाना चाहिए था। 
धवन ने सवाल किया, ‘‘इस याचिका के बारे में ऐसी क्या खास बात थी? इस मामले का सार इसका दुराग्रह है लेकिन याचिका में यह कहां नजर आ रहा है?’’ धवन ने दलील दी कि हाई कोर्ट के समक्ष मुख्यमंत्री के खिलाफ यह एक ‘राजनीति‘ याचिका थी और यह विश्वसनीय सूत्रों पर आधारित थी। 
धवन ने कहा, ‘‘शिकायत में सबूत हें और यह कई पन्नों में हैं। अब सवाल यह है कि किसान जून और जुलाई में जमीन खरीद कर जनवरी में क्यों बेचेंगे?’’ अब मैं खुद से सवाल करता हूं कि क्या इस तरह की शिकायत की जांच होनी चाहिए या नहीं। कई गंभीर किस्म के सौदे थे और क्यों इनकी जांच नहीं होनी चाहिए थी।’’ धवन की दलीलों का संज्ञान लेते हुए पीठ ने कहा, ‘‘हमारा मानना है कि इस मामले में विचार की जरूरत है और इसलिए हम नोटिस जारी करेंगे।’’ 
पूर्व महाधिवक्ता धम्मालपति श्रीनिवास की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता मुकुल रोहतगी ने कहा, ‘‘हमें इस पर कोई आपत्ति नहीं है। मामले की सुनवाई होनी चाहिए।’’ उन्होंने कहा कि यह बेहूदा बात है कि किसी को इस बात की पहले से जानकारी थी कि राज्य की राजधानी के लिए जमीन ली जा रही है। यह सर्वविदित है कि इस बारे में योजना कब आयी।’’ रोहतगी ने कहा, ‘‘यह आपातकाल से भी बद्तर है। किसी को निशाना बनाना आसान है लेकिन प्रतिष्ठा अर्जित करना बहुत कठिन काम है। एक अधिवक्ता को सिर्फ इसलिए निशाना बनाया गया क्योंकि वह पूर्ववर्ती सरकार का महाधिवक्ता था।’’ 
पूर्व महाधिवक्ता की ओर से ही वरिष्ठ अधिवक्ता हरीश साल्वे ने कहा कि अगर आदेश इतना की गलत था तो राज्य सरकार को वापस हाई कोर्ट जाना चाहिए था और इसे खत्म कराना चाहिए था। उन्होंने कहा, ‘‘यह आदेश सितंबर में पारित हुआ और अब नवंबर चल रहा है लेकिन अभी तक कोई जवाब दाखिल नहीं हुआ।’’ 
उन्होंने कहा कि सोशल मीडिया पर हाई कोर्ट के न्यायाधीशों पर आरोप लगाए गए। साल्वे ने कहा, ‘‘हाई कोर्ट ने इसका संज्ञान लिया था क्योंकि उसे मालूम है कि राज्य में क्या कुछ हो रहा है। अब वे (राज्य) यह मामला बनाने का प्रयास कर रहे हैं कि (पूर्व) महाधिवक्ता को पहले से जानकारी थी और उन्होंने जमीन खरीद ली थी। यह अधिकारों का दुरूपयोग है।’’ 
उन्होंने कहा कि इस कोर्ट को इसे बढ़ावा नहीं देना चाहिए कि उन्हे हाई कोर्ट में आस्था नहीं है। धवन ने इन दलीलों के जवाब में कहा कि राज्य किसी भी अदालत के खिलाफ नहीं है लेकिन आपराधिक मामले की तो जांच होनी ही चाहिए। उन्होंने कहा, ‘‘आरोपों में अपराध का पता चलता है और इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुयी। ऐसा आदेश पारित नहीं किया जाना चाहिए था।’’ 

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