सुप्रीम कोर्ट ने शुक्रवार को बॉम्बे हाई कोर्ट के एक हालिया आदेश को बरकरार रखा जिसने अनुसूचित जनजाति और महिलाओं के लिए निर्वाचन क्षेत्रों के आरक्षण में अनियमितता को लेकर गोवा में पांच नगरपालिका परिषदों के चुनाव की तिथि आगे बढ़ा दी थी।
शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद पत्रकारों से बात करते हुए वकील कार्लोस फेरेरा (राज्य कांग्रेस कानूनी प्रकोष्ठ के प्रमुख ) ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने गोवा सरकार को राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में एक सेवारत राज्य कानून सचिव नियुक्त करने के लिए भी गलत ठहराया था। साथ ही अन्य राज्यों को यह सुनिश्चित करने के लिए निर्देशित किया कि राज्य चुनाव आयुक्त के पास दोहरी जिम्मेदारी नहीं होनी चाहिए।
कोर्ट ने यह भी कहा है कि पांच नगरपालिका परिषदों के चुनाव, जो मूल रूप से 20 मार्च को होने वाले थे, अब 30 अप्रैल को पूरे होने चाहिए। फरेरा ने कहा, सुप्रीम कोर्ट ने इस फैसले का उपयोग करते हुए संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अद्वितीय दिशा-निर्देश पारित किए हैं। कोर्ट ने निर्देश दिया कि कानून सचिव, जो (गोवा में) राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में कार्यभार संभाल रहे हैं, को तत्काल हटा दिया जाए। साथ ही यह भी निर्देश दिया कि यदि दूसरे राज्यों में राज्य चुनाव आयुक्त दोहरी जिम्मेदारी निभा रहे हैं, तो (उनके पदों से) हटा दिया जाना चाहिए।
कांग्रेस अधिकारी ने यह भी कहा, यह स्वतंत्र पद (राज्य चुनाव आयुक्त) एक बहुत ही उच्च संवैधानिक पद है, जैसा कि इस निर्णय में सुप्रीम कोर्ट द्वारा रेखांकित किया गया है। सुप्रीम कोर्ट ने राज्य चुनाव आयुक्त के रूप में अनुशासन बरकरार रखने एवं कार्यशैली से जुड़े उनके आचरण को लेकर कानून सचिव को फटकार लगाई है।
गौरतलब है कि महिलाओं और अनुसूचित जाति श्रेणियों के लिए नगरपालिका वाडरें के आरक्षण में अनियमितताओं से संबंधित एक याचिका पर सुनवाई करने के दौरान 2 मार्च को बॉम्बे हाई कोर्ट की बेंच ने पांच नगरपालिका परिषदों – मरगाव, मापुसा, मोर्मुगाओ, संगुएम और क्यूपेम के चुनाव 15 अप्रैल तक स्थगित कर दिए थे। 20 मार्च को सभी 11 नगरपालिका परिषदों और एक नगर निगम में चुनाव होने वाले थे।
गोवा सरकार ने एक विशेष अवकाश याचिका के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट में हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती दी थी। यहां तक कि दो विपक्षी दलों – कांग्रेस और गोवा फॉरवर्ड ने भी बाद में सुप्रीम कोर्ट में कैविएट दायर की थी। दरहसल , गोवा में विपक्षी दलों ने सुप्रीम कोर्ट के आदेश का स्वागत किया है।