केरल के राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद को केरल विश्वविद्यालय की डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान करने की सिफारिश वाले बयान को गैरजिम्मेदार और जानकारी के अभाव वाला करार दिया है। खान ने कहा कि वह एक परेशान करने वाली प्रवृत्ति देख रहे हैं जो राष्ट्रीय संस्थानों, प्रतिष्ठा और गरिम को निशाना बनाती है। यह पूछे जाने पर कि क्या उन्होंने राष्ट्रपति कोविंद को डी. लिट प्रदान करने की कोई सिफारिश की थी, खान ने संवाददाताओं से कहा, ‘‘मुझे जो बोलना था मैंने बोला है। मैं गैर-जिम्मेदाराना बयानों का जवाब नहीं देने जा रहा। मैं अज्ञानी बयानों पर प्रतिक्रिया नहीं दे सकता। मैं पूरी तरह से अज्ञानता से दिए गए बयानों का जवाब नहीं देने जा रहा हूं।’’
राष्ट्रीय संस्था की चर्चा हल्के ढंग से नहीं करनी चाहिए : खान
राज्यपाल ने संवाददाताओं से बातचीत में कहा कि, जहां तक किसी सिफारिश की बात है तो यह या तो विश्वविद्यालय के प्राधिकारियों या कुलाधिपति के दायरे में है। उन्होंने यह भी कहा कि ,राष्ट्रपति और राज्यपाल को राष्ट्रीय संस्था माना जाता है और संविधान के अनुच्छेद 51 ए के तहत राष्ट्रीय संस्था का सम्मान किया जाना चाहिए। खान ने कहा, हमें राष्ट्रीय संस्था की चर्चा हल्के ढंग से नहीं करनी चाहिए। यह राष्ट्रीय प्रतिष्ठा और गरिमा का सवाल है खान की यह टिप्पणी कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्नीथला के आरोपों के मद्देनजर आयी है कि, वाम मोर्चा सरकार ने राष्ट्रपति को केरल विश्वविद्यालय की डी. लिट की मानद उपाधि प्रदान करने के लिए राज्यपाल की सिफारिश को खारिज कर दिया था।
कानून बनाने वाले कानून तोड़ रहे हैं : राज्यपाल
इस मामले में रमेश चेन्नीथला के बयान के बाद राज्य विधानसभा में विपक्ष के नेता वी डी सतीशन ने कहा था कि, यदि कुलाधिपति के रूप में राज्यपाल ने कुलपति से किसी को डी. लिट प्रदान करने के लिए कहा था, तो यह उनके आधिकारिक पद का दुरुपयोग है। दूसरी ओर केरल माकपा सचिव कोडियेरी बालकृष्णन ने इस आरोप से इनकार किया था कि, पार्टी राष्ट्रपति को डॉक्टरेट की मानद उपाधि देने की सिफारिश के खिलाफ थी। यह पूछे जाने पर कि क्या वह विश्वविद्यालयों के कुलाधिपति के रूप में पद छोड़ने के अपने फैसले को बदल देंगे, खान ने कहा कि वैधानिक कानून के अनुसार, राज्यपाल को विश्वविद्यालयों में कार्यपालिका के हस्तक्षेप को सीमित करने के लिए यह पद दिया गया था। उन्होंने कहा, हालांकि यदि कानून बनाने वाले कानून तोड़ रहे हैं, तो मेरे कुलाधिपति बने रहने का कोई मतलब नहीं है।