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‘जबरन धर्मांतरण’ के खिलाफ कानून हिमाचल प्रदेश में लागू हुआ, एक वर्ष पहले विस में हुआ था पारित

भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या धर्मांतरण के ‘‘एकमात्र उद्देश्य’’ से शादी के खिलाफ एक अधिक कठोर कानून लागू हो गया है।

भाजपा शासित हिमाचल प्रदेश में जबरन या बहला-फुसलाकर धर्मांतरण या धर्मांतरण के ‘‘एकमात्र उद्देश्य’’ से शादी के खिलाफ एक अधिक कठोर कानून लागू हो गया है, जिसमें उल्लंघनकर्ताओं के लिए सात वर्ष तक की सजा का प्रावधान है। इसे एक वर्ष से अधिक समय पहले राज्य विधानसभा द्वारा पारित किया गया था।
हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता कानून, 2019 को शुक्रवार को राज्य के गृह विभाग द्वारा अधिसूचित कर दिया गया। यह 2006 के कानून की जगह लेगा, जिसे विधानसभा ने निरस्त कर दिया है।
यह घटनाक्रम ऐसे समय हुआ है, जब उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा पिछले महीने जबरन या धोखेबाजी से धर्मांतरण के खिलाफ एक अध्यादेश को अधिसूचित किया गया था, जिसमें विभिन्न श्रेणियों के तहत 10 साल तक की कैद और अधिकतम 50,000 रुपये के जुर्माने का प्रावधान है।
भाजपा शासित कई अन्य राज्य इस तरह के कानूनों पर विचार कर रहे हैं और पार्टी नेताओं का कहना है कि इसका उद्देश्य ‘लव जिहाद’ से मुकाबला करना है। इस विधेयक को पिछले साल 30 अगस्त को हिमाचल प्रदेश विधानसभा में पारित किया गया था और राज्यपाल की मंजूरी प्राप्त हुई थी।
हालांकि, गृह विभाग को इसके कार्यान्वयन की अधिसूचना जारी करने में 15 महीने से अधिक का समय लग गया। इस कानून में सात साल तक की कड़ी सजा का प्रावधान है जबकि पुराने हिमाचल प्रदेश धर्म की स्वतंत्रता कानून, 2006 के तहत तीन साल सजा का प्रावधान था।
अधिनियम बहकाकर, बलपूर्वक, अनुचित प्रभाव, जबरदस्ती, प्रलोभन, विवाह या किसी अन्य धोखाधड़ी के माध्यम से धर्मांतरण पर प्रतिबंध लगाता है। धर्मांतरण के एकमात्र उद्देश्य के लिए किसी भी विवाह को अधिनियम की धारा 5 के तहत अमान्य घोषित किया गया है।
कानून को अधिसूचित करने में देरी के बारे में पूछे जाने पर, विधि मंत्री सुरेश भारद्वाज ने कहा कि गृह विभाग को अधिनियम को लागू करने के लिए अपनाई जाने वाली उचित प्रक्रिया के लिए नियम बनाने थे, अधिसूचना जारी करने में देरी उसी वजह से हो सकती है।
गृह विभाग का अतिरिक्त प्रभार मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर के पास है। संपर्क करने पर, अतिरिक्त मुख्य सचिव (गृह) मनोज कुमार ने कहा कि वह लगभग एक महीने की छुट्टी पर थे और प्रभारी अधिकारी इस प्रश्न का उत्तर देने में सक्षम होंगे।
अधिनियम के अनुसार, यदि कोई धर्म परिवर्तन करना चाहता है तो उसे जिला मजिस्ट्रेट को एक महीने का नोटिस देना होगा कि वह अपनी मर्जी से धर्मांतरण कर रहा है। यह प्रावधान 2006 के कानून में भी लागू किया गया था और इसे अदालत में चुनौती दी गई थी।
धर्मांतरण कराने वाले धार्मिक व्यक्ति को भी एक महीने का नोटिस भी देना होगा। अपने मूल धर्म से जुड़ने वालों को इस प्रावधान से छूट है। नए अधिनियम के अनुसार, यदि दलितों, महिलाओं या नाबालिगों का धर्मपरिवर्तन कराया जाता है, तो जेल की अवधि दो-सात वर्ष के बीच होगी।

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