भोपाल, (मनीष शर्मा) : नगरीय निकायों में शानदार जीत दर्ज कराने के बाद मध्य प्रदेश में भाजपा ने जिला और जनपद पंचायतों के चुनाव में भी उल्लेखनीय सफलता हासिल की है। दोपहर तक घोषित 43 जिला पंचायतों में से चौतीस में भाजपा के उम्मीदवारों ने जीत दर्ज की है। गैर दलीय आधार पर हुए इन चुनावों में भाजपा और शिवराज सरकार ने एक बार फिर जबरदस्त दबदबा कायम किया है।
कुल 52 जिला पंचायतों में से अधिकतर जगह कमल खिला है और कांग्रेस के पंजे में निहित विजय की रेखा और धुंधली होने लगी है। यह कहना गलत है कि कांग्रेस के पास खोने को कुछ था ही नहीं। उसके पास खोने को अपनी बची-खुची प्रतिष्ठा और राज्य के दिग्गज नेताओं का विश्वास था। इन दोनों को कांग्रेस ने इन नतीजों में काफी हद तक और खो दिया है।
यदि भोपाल में कांग्रेस समर्थित महिला एन चुनाव से पहले ही कांग्रेस छोड़कर भाजपा की हो गयीं तो यह पार्टी की प्रतिष्ठा और नेताओं की क्षमता पर सवाल खड़े करता है। पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह तो इस चुनाव को अपनी प्रतिष्ठा से जोड़कर सीधे मैदान में डटे थे लेकिन फिर भी वे कांग्रेस और अपनी प्रतिष्ठा बचा नहीं पाएं। फिर ऐसा अकेले भोपाल में ही नहीं, कई जगह हुआ है। भाजपा की जीत बताती है कि सत्तारूढ़ दल ने नगरीय निकाय चुनाव में मिली सफलता को दौहराते हुए बूथ स्तर तक अपनी शक्ति को फिर स्थापित कर दिया है।
किसान-पुत्र शिवराज सिंह चौहान की यह दोहरी जीत है। न तो मध्यप्रदेश में कृषि कानून विरोधी आंदोलन का कोई असर दिखा था और न ही पंचायत चुनाव में किसान भाजपा से अलग गए। नगरीय निकाय के बाद इस परिणाम से साफ है कि भाजपा न सिर्फ जोरदार तरीके से जीती है, बल्कि उसने कांग्रेस को करारी हार भी दी है। जीत और हार के इस अंतर में अन्तर्निहित शिवराज फैक्टर को मध्यप्रदेश में फिलहाल कोई भी नकार नहीं सकता है।