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तमिलनाडु में NEET को लेकर नहीं थम रही राजनीतिक लड़ाई, BJP व DMK में खींचतान का दौर जारी

केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष अपने हलफनामे में कहा है कि समिति न तो अपेक्षित है और न ही वैध है। केंद्रीय मंत्रालय ने गुरुवार को हलफनामा दाखिल किया।

तमिलनाडु में जब से भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) व एआईएडीएमके की सरकार गई है और विधानसभा चुनावों में कांग्रेस व डीएमके की सरकार सत्ता में आई है, तभी से राजनीतिक लड़ाई का दौर बढ़ गया  है। दरअसल, राज्य में राष्ट्रीय पात्रता सह प्रवेश परीक्षा (एनईईटी) को लेकर राजनीतिक जुबान-बाजी इतनी बढ़ गई है कि अब मामला काफी आगे तक जा पहुंचा है और दोनों ही अपने रुख से पीछे हटने पर किसी भी कीमत पर तैयार नहीं है।
दूसरी तरफ, केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष अपने हलफनामे में कहा है कि समिति न तो अपेक्षित है और न ही वैध है। केंद्रीय मंत्रालय ने गुरुवार को हलफनामा दाखिल किया। भाजपा तमिलनाडु के राज्य सचिव के नागराजन ने मद्रास उच्च न्यायालय में एक जनहित याचिका (पीआईएल) दायर की थी कि तमिलनाडु सरकार द्वारा गठित राजन समिति संविधान के खिलाफ है और जनहित याचिका में इसे रद्द करने की प्रार्थना की थी।
केंद्रीय स्वास्थ्य और परिवार कल्याण मंत्रालय में अवर सचिव, चंदन कुमार ने मंत्रालय की अपील में कहा कि भारतीय चिकित्सा परिषद (आईएमसी) अधिनियम की धारा 14 के अनुसार, स्नातक और स्नातकोत्तर चिकित्सा पाठ्यक्रमों में प्रवेश केवल नीट के माध्यम से किया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने 29 अप्रैल 2020 में क्रिश्चियन मेडिकल कॉलेज (सीएमसी), वेल्लोर द्वारा दायर एक मामले में कहा था कि नीट न तो संविधान में गारंटीकृत सामाजिक सिद्धांतों और न ही देश के सामाजिक ताने-बाने के खिलाफ है।
भाजपा के राज्य सचिव, के नागराजन ने कहा, जस्टिस ए.के. राजन समिति जैसी समिति के गठन का कोई अधिकार नहीं है, जबकि सुप्रीम कोर्ट ने सीएमसी वेल्लोर मामले में स्पष्ट किया था कि नीट सामाजिक न्याय के खिलाफ नहीं है। द्रमुक, द्रविड़ कड़गम और अन्य दलों ने मद्रास उच्च न्यायालय के समक्ष अलग-अलग याचिकाएं दायर की हैं। मुख्य न्यायाधीश संजीव बनर्जी और न्यायमूर्ति सेंथिलकुमार राममूर्ति की मद्रास उच्च न्यायालय की पहली पीठ इस मामले की सुनवाई 13 जुलाई को करेगी।

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