पटना : पूर्व युवा कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष ललन कुमार एंव इफ्तेखार अहमद ने कहा कि बिहार में कृषि क्षेत्र के विकास पर मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का विकास दावा खोखला है। नेताओं ने कहा कि देशव्यापी किसान आंदोलन की मुख्य मांगें कर्ज माफी, फसल की लागत का डेढ़ गुना मूल्य तथा अनिवार्य फसल खरीद गारंटी की मांगों को मोदी सरकार ने ठुकरा दिया। 5 एकड़ तक के किसानों के मदद के लिए 6000 रु सालाना की बेहद तुच्छ राशि की पेशकश बजट में की गई लेकिन बटाईदारों के हिस्से कुछ भी नहीं है। प्रधानमंत्री किसान सम्मान योजना के नाम पर किसानों व आमजनों को ठगने का काम किया गया।
बिहार की भाजपा-जदयू की सरकार भी किसानों के साथ लगातार विश्वासघात कर रही है, राज्य में कई वर्षों से धान-गेहूं-मक्का सहित किसी फसल की खरीद नहीं हो रही है। बाढ़-सुखाड़ से बर्बाद फसलों का मुआवजा नहीं मिल रहा है, राज्य में सिंचाई सुविधा बदहाल है, वहीं किसानों को अन्य राज्यों की भांति कृषि कार्य के लिए मुफ्त बिजली नहीं मिल रही है।
बटाईदारों-खेतिहरों व ग्रामीण मजदूरों के वास-आवास मजदूरी और पेंशन के सवालों को हल करने के बदले सरकार दलित-गरीबों को उजाडऩे में लगी है। पर्चे की जमीन के लिए अनशनकारियों पर सीतामढ़ी के रून्नी सैदपुर में बम से हमला और बेगूसराय में सैंकड़ों दलित-गरीबों की झुग्गी-झोपडिय़ों को जलाया जाना यह दर्शाता है कि बिहार सरकार मजदूर विरोधी काम कर रही है। नेताद्वय ने कहा कि लंबे संघर्ष के बाद बिहार सरकार ने वृद्धों के लिए 400 रु की पेंशन राशि घोषित की है, यह बहुत तुच्छ राशि है। कम से कम 3 हजार पेंशन की राशि होनी चाहिए मनरेगा में मजदूरी बहुत कम है। उसे कम से कम 600 रु होना चाहिए।