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फिर गर्माया मनचाहों को नियुक्ति देने का मामला

आयुर्वेद विश्वविद्यालय शुरू से ही ​भ्रष्टाचार के चलते विवादों से घिरा रहा। एक मामला खत्म नहीं होता कि विवादों के पिटारे से कोई नया विवाद सामने आ जाता।

देहरादून : उत्तराखंड आयुर्वेद विश्वविद्यालय शुरू से ही ​भ्रष्टाचार और धांधलियों के चलते विवादों से घिरा रहा है। आलम यह है कि एक मामला खत्म नहीं होता कि विवादों के पिटारे से कोई नया विवाद सामने आ जाता है। हाल ही भ्रष्टाचार और वित्तीय गड़बड़ियों के मामले में पूर्व कुलसचिव डॉ. मृत्युंजय मिश्रा की गिरफ्तारी का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि अब विवि सहायक कुलसचिव की नियुक्ति पर घिर गया है।

यह मामला शिक्षा विभाग से आयुष विभाग में समायोजित कर मनमाने ढंग से नियुक्ति देने का है। दरअसल, विवि में एडजस्टमेंट का खेल शुरुआत से ही चलता रहा है। गदरपुर के एक इंटर कालेज में शिक्षक रहे संजीव पांडे को शिक्षा विभाग से आयुष विभाग में समायोजित किया गया। उन्हें वर्ष 2014 में आयुर्वेद विश्वविद्यालय में सहायक कुलसचिव के पद पर नियुक्त किया गया था।

जबकि नियमों पर गौर करें तो शिक्षा विभाग से आयुष विभाग में यह समयोजन गलत ढंग से किया गया। यही कारण रहा कि इस मामले में भी शुरूआत से ही विवाद चला आ रहा था। सवाल यह भी है कि राज्य में तमाम इंटर कालेज में शिक्षक कार्य कर रहे हैं।उनमें से इन्हें ही क्यों पिक एन्ड चूज किया गया।

हालांकि मामले में पूर्व कुलसचिव व सहायक कुलसचिव पद पर नियुक्त किए गए संजीव पांडे की आपस में खासी नजदीकी भी बताई जाती है। जिसके चलते वह पद पर बने रहे।

विभागों के मांगी जानकारी
मामले में आरटीआई एक्टिविस्ट अरविंद सिंह भाकुनी ने सूचना अधिकार अधिनियम 2005 के तहत संबंधित विभागों से जानकारी मांगी। जिसमें सहायक कुलसचिव पांडे को समायोजित करने के लिए शिक्षा विभाग से ली गई अनापत्ति की कापी मांगी गई है। विश्विद्यालय अभी तक इसको उपलब्ध नही करा पाया है।

इसी क्रम में कोई जानकारी न दिए जाने पर आरटीआई आवेदक ने सूचना आयुक्त के पास शिकायत करते हुए क्षतिपूर्ति की मांग की है। यह नियुक्ति कुलपति के स्तर की है।

पूर्व कुलपति डॉ. एसपी मिश्र ने सहायक कुलसचिव का पद रिक्त दिखा शासन को भेजा था। जिसपर इनको उधमसिंहनगर स्थित गदरपुर इंटर कालेज से विश्वविद्यालय से प्रतिनियुक्ति में लाकर बाद में समायोजित किया गया।

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