देश के दक्षिण में स्थित राज्य तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे. जयललिता की मौत की परिस्थितियों की जांच कर रहे आयोग के समक्ष 150 से अधिक गवाह पेश हुए और इसका काम जल्द पूरा हो जाएगा। आयोग के गठन को चार साल से अधिक समय हो चुका है। जयललिता की करीबी रही शशिकला के 2018 के हलफनामे और इलाज करने वाले अस्पताल के चिकित्सकों की गवाही को महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिसके आधार पर आयोग जयललिता की मौत से जुड़े सवालों का जवाब तलाशेगा।
158 गवाहों ने दर्ज कराए हैं बयान
पूर्व मुख्यमंत्री की मौत के मामले में आयोग के समक्ष 158 गवाहों ने बयान दर्ज कराए हैं, जिनमें जयललिता की भतीजी दीपा और भतीजा दीपक, चिकित्सक, शीर्ष अधिकारी और अन्नाद्रमुक के नेता सी. विजयभास्कर, एम थम्बीदुरई, सी पोन्नैयन और मनोज पांडियन शामिल हैं। दीपा और दीपक ने जयललिता की मौत की परिस्थितियों पर संदेह जताया था। इस मामले में 100 से अधिक गवाहों से जिरह भी की गई है।
इन लोगों से भी हुई थी पूछताछ
इस मामले में सात याचिकाकर्ता-गवाह थे, जिनमें मदुरै के पी सरवानन शामिल हैं। वह पहले द्रमुक से जुड़े थे, लेकिन अब वह भाजपा में शामिल हो गये हैं। शशिकला के परिजन और जयललिता के रसोइया राजाम्मल, आईएएस एवं आईपीएस अधिकारी तथा अस्पताल के पैरामेडिकल कर्मचारियों ने आयोग के समक्ष अपने बयान दर्ज कराए हैं। अन्नाद्रमुक के शीर्ष नेता ओ. पनीरसेल्वम (ओपीएस) गवाही देने वाले शीर्ष राजनीतिज्ञों में शामिल हैं, जिन्होंने कहा है कि उन्हें ‘अम्मा’ के निधन को लेकर कोई संदेह नहीं है तथा शशिकला के लिए उनके मन में सम्मान और श्रद्धा भी है। पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा गठित अरुमुगास्वामी जांच आयोग ने 22 नवम्बर 2017 को अपना काम शुरू किया था।
वर्ष 2016 में हुई थी जयललिता की मौत
गौरतलब है कि पांच दिसम्बर 2016 को जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक के पदाधिकारियों के एक वर्ग ने अपनी नेता की मौत को लेकर संदेह जताया था और शशिकला एवं उनके परिजनों के खिलाफ आरोप लगाए थे। आयोग के गठन के बाद इस मामले में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सबसे पहले शशिकला और अपोलो अस्पताल के अधिकारियों को तलब किया गया था। जयललिता को 22 सितंबर 2016 को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 75 दिन बाद उनका निधन हो गया था।
158 गवाहों ने दर्ज कराए हैं बयान
पूर्व मुख्यमंत्री की मौत के मामले में आयोग के समक्ष 158 गवाहों ने बयान दर्ज कराए हैं, जिनमें जयललिता की भतीजी दीपा और भतीजा दीपक, चिकित्सक, शीर्ष अधिकारी और अन्नाद्रमुक के नेता सी. विजयभास्कर, एम थम्बीदुरई, सी पोन्नैयन और मनोज पांडियन शामिल हैं। दीपा और दीपक ने जयललिता की मौत की परिस्थितियों पर संदेह जताया था। इस मामले में 100 से अधिक गवाहों से जिरह भी की गई है।
इन लोगों से भी हुई थी पूछताछ
इस मामले में सात याचिकाकर्ता-गवाह थे, जिनमें मदुरै के पी सरवानन शामिल हैं। वह पहले द्रमुक से जुड़े थे, लेकिन अब वह भाजपा में शामिल हो गये हैं। शशिकला के परिजन और जयललिता के रसोइया राजाम्मल, आईएएस एवं आईपीएस अधिकारी तथा अस्पताल के पैरामेडिकल कर्मचारियों ने आयोग के समक्ष अपने बयान दर्ज कराए हैं। अन्नाद्रमुक के शीर्ष नेता ओ. पनीरसेल्वम (ओपीएस) गवाही देने वाले शीर्ष राजनीतिज्ञों में शामिल हैं, जिन्होंने कहा है कि उन्हें ‘अम्मा’ के निधन को लेकर कोई संदेह नहीं है तथा शशिकला के लिए उनके मन में सम्मान और श्रद्धा भी है। पूर्ववर्ती अन्नाद्रमुक सरकार द्वारा गठित अरुमुगास्वामी जांच आयोग ने 22 नवम्बर 2017 को अपना काम शुरू किया था।
वर्ष 2016 में हुई थी जयललिता की मौत
गौरतलब है कि पांच दिसम्बर 2016 को जयललिता के निधन के बाद अन्नाद्रमुक के पदाधिकारियों के एक वर्ग ने अपनी नेता की मौत को लेकर संदेह जताया था और शशिकला एवं उनके परिजनों के खिलाफ आरोप लगाए थे। आयोग के गठन के बाद इस मामले में जानकारी उपलब्ध कराने के लिए सबसे पहले शशिकला और अपोलो अस्पताल के अधिकारियों को तलब किया गया था। जयललिता को 22 सितंबर 2016 को अपोलो अस्पताल में भर्ती कराया गया था और 75 दिन बाद उनका निधन हो गया था।