देहरादून : सरकारी अस्पतालों में नए साल से इलाज महंगा हो जाएगा। रजिस्ट्रेशन से लेकर भर्ती शुल्क और तमाम जांच के लिए मरीज को दस फीसदी अधिक दाम चुकाने पड़ेंगे। शहर के सरकारी अस्पतालों में इलाज महंगा हो जाने का असर मरीज व तीमारदारों पर कितना पड़ेगा, यह तो वक्त बताएगा। यह आशंका है कि दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल पर बोझ जरूर बढ़ जाएगा।
वर्ष 2015 से मेडिकल कॉलेज अस्पताल की चिकित्सा दरों में इजाफा नहीं हुआ है। ऐसे में यहां इलाज अपेक्षाकृत सस्ता हो जाने से न सिर्फ मरीजों का दबाव बढ़ जाएगा, बल्कि इसका असर सीमित संसाधनों पर भी पड़ेगा। यह स्थिति सरकार की उस कवायद के विपरीत होगी, जिसमें यह प्रयास किया जा रहा था कि दून अस्पताल में मरीजों का दबाव कम किया जाए। शहर में गांधी, कोरोनेशन व अन्य सरकारी अस्पतालों में ओपीडी पर्चा बनवाने के लिए मरीज को नए साल से 25 रुपये देने पड़ेंगे।
वहीं, दून अस्पताल में पर्चा अभी भी 17 रुपये में बन रहा है। सबसे अधिक दिक्कत उन मरीजों को होगी, जिन्हें अल्ट्रासाउंड, एक्सरे या ईसीजी कराना होगा। दून अस्पताल में अल्ट्रासाउंड मात्र 354 रुपये में हो रहा है। वहीं, गांधी व कोरोनेशन में इसके 518 रुपये देने पड़ेंगे। यही स्थिति एक्सरे को लेकर भी है। दून में एक्सरे 133 रुपये का है, जबकि सरकारी अस्पताल में यह करीब 200 रुपये पहुंच गया है।
सीबीसी जांच के लिए जहां सरकारी अस्पतालों में 209 रुपये देने होंगे, तो वहीं दून अस्पताल में महज 98 रुपये में यह जांच की जा रही है। ओपीडी, आइपीडी शुल्क समेत कई जांच ऐसी हैं जो दून अस्पताल के मुकाबले अन्य जगह महंगी हो जाएंगी। जाहिर है कि व्यक्ति इलाज भी वहीं कराएगा, जहां सस्ता है।
मरीजों की संख्या कम होगी
दून मेडिकल कॉलेज अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक डॉ. केके टम्टा का कहना है कि सरकारी अस्पतालों में इलाज महंगा होने जा रहा है। इसका असर दून अस्पताल में निश्चित रूप से दिखेगा। दून अस्पताल में प्रतिदिन औसतन डेढ़ से दो हजार मरीजों का इलाज किया जाता है।
लेकिन, इस वजह से मरीजों संख्या में वृद्धि होगी। प्रदेश के सभी सरकारी अस्पतालों में पूर्व के एक शासनादेश के तहत यूजर चार्ज में हर साल दस फीसद बढ़ोत्तरी की जाती है। पर दून अस्पताल को वर्ष 2015 में दून मेडिकल कॉलेज में तब्दील कर दिया गया था। तब से ही यहां चिकित्सा दरें यथावत हैं।
पर अन्य सरकारी अस्पतालों में शुल्क बढ़ता रहा। जिससे दून अस्पताल व अन्य चिकित्सालयों के बीच शुल्क की खाई पैदा हो गई है। बल्कि यह फासला अत्याधिक बढ़ता जा रहा है।