पश्चिम बंगाल के पूर्व मंत्री राजीव बनर्जी ने आरोप लगाया है कि “कट मनी की संस्कृति” का विरोध करने को लेकर उन्हें तृणमूल कांग्रेस में दरकिनार किया गया और दूसरे कार्यकाल के दौरान हर वक्त उनके साथ सौतेला व्यवहार किया गया, जिसके चलते उन्हें राज्य की सत्तारूढ़ पार्टी के साथ आखिरकार अपना नाता तोड़ना पड़ा।
बनर्जी का टीएमसी छोड़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का दामन थामना भगवा पार्टी के लिए बिन मांगी मुराद पूरी होने जैसी है, जो बंगाल में सत्ता हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाए हुए है।
‘मनरेगा’ के क्रियान्वयन में राज्य के प्रथम स्थान पर होने का टीएमसी के प्रचार करने का भी उन्होंने मजाक उड़ाया और कहा कि यह विशिष्टता पश्चिम बंगाल में युवाओं के लिए नौकरियों की कमी की गवाही देती है। एक वक्त टीएमसी के प्रमुख नामों में शामिल रहे, पूर्व वन मंत्री ने कहा कि उन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ने का विचार किया था, लेकिन विधानसभा चुनाव लड़ने की चुनौती इस उम्मीद में स्वीकार कर ली कि भाजपा राज्य में विकास का नये युग का सूत्रपात करेगी।
जनवरी में भाजपा में शामिल हुए 51 वर्षीय बनर्जी, दोम्जुर सीट से तीसरी बार जीत दर्ज करने की उम्मीद कर रहे हैं, जहां से वह 2011 से टीएमसी प्रत्याशी के तौर पर दो बार जीत चुके हैं। पिछड़ा वर्ग कल्याण विभाग में अपने “कड़वे अनुभवों” के बारे में बनर्जी ने कहा कि उन्हें एक बार “साबुज साथी’ परियोजना के तहत विद्यार्थियों को साइकिल वितरित करने में गड़डबड़ी की शिकायत मिली थी और उन्होंने इसकी जानकारी मुख्यमंत्री कार्यालय को दी थी।
उन्होंने कहा “यह बात बताने का यह नतीजा हुआ कि मुझे विभाग से हटा दिया गया क्योंकि मैंने कमीशन लेने की संस्कृति को खत्म करने की कोशिश की।” टीएमसी सरकार पर उनके निर्वाचन क्षेत्र के परियोजना कार्यों के लिए फाइलों को मंजूरी नहीं देने का आरोप लगाते हुए बनर्जी ने दावा किया कि जब भी उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों और पार्टी सदस्यों के एक वर्ग के निहित स्वार्थों के रास्ते में आने की कोशिश की, उन्हें उनके मंत्रालयों से उन्हें हटा दिया गया।
चुनाव पूर्व टीएमसी को धोखा देने से पहले अपने पद की तमाम शक्तियों का लाभ उठाने के आरोपों पर पूर्व सिंचाई मंत्री ने कहा कि निर्वाचन क्षेत्र के लोग इलाके में उनके विकास कार्यों से भली-भांति अवगत हैं।