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ये कैसा इंसाफ? मौत के 21 महीने बाद अदालत ने सुनाया फैसला, वो बेगुनाह था

पूरी जिंदगी वो अपने माथे पर भ्रष्टाचार के आरोप लिए घूमते रहे। मुश्किलें और परेशानियां झेलीं लेकिन न्याय के लिए लड़ते रहे। आखिर अपने दामन पर यह दाग लिए ही वह इस दुनिया से चले गए। उनके मरने के 21 महीने बाद कोर्ट का फैसला आया कि वो बेकसूर थे।

बहुत देर कर दी मेहरबां आते-आते-
देश में कानून कितना सख्त है, यह तो हर कोई जानता है, लेकिन इसके पीछे की क्या वजह है, यह शायद कम ही लोग जानते है। “भले ही सौ कसूरवार लोग छूट जाए, लेकिन किसी बेगुनाहगार को सजा नहीं मिलनी चाहिए।” यह है हमारे देश का असली कानून का मतलब, लेकिन ऐसा करते-करते छत्तीसगढ़ में बहुत देर हो गई। 
जी हां, पूरी जिंदगी वो अपने माथे पर भ्रष्टाचार के आरोप लिए घूमते रहे। मुश्किलें और परेशानियां झेलीं लेकिन न्याय के लिए लड़ते रहे। आखिर अपने दामन पर यह दाग लिए ही वह इस दुनिया से चले गए। उनके मरने के 21 महीने बाद कोर्ट का फैसला आया कि वो बेकसूर थे। 
यह मामला है छत्तीसगढ़ का, जहां भ्रष्टाचार के दाग से छुटकारा पाने के लिए एक शख्स ताउम्र लड़ता रहा, लेकिन न्याय नहीं मिला। अब कोर्ट ने अपने फैसले में उसे न्याय दिया है, लेकिन फैसला आने के 21 महीने पहले ही उसकी मौत हो चुकी है। पिछले 18 साल से इस मामले में सुनवाई चल रही थी। 
साल 1999 का मामला, 1000 रुपए रिश्वत-
मामला छत्तीसगढ़ के दुर्ग जिला स्थित शिव प्रसाद का था। साल 1999 में शिव प्रसाद दुर्ग में फॉरेस्ट बिड गार्ड के पद पर तैनात थे। एक दिन लकड़ी चोरी की सूचना पर वह मौके पर पहुंचे और लकड़ी जब्त कर ली। बाद में आरोपी ने उनके खिलाफ 1000 रुपए रिश्वत मांगने की शिकायत दर्ज करा दी। विशेष अदालत में मामले की सुनवाई हुई और भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के तहत शिव प्रसाद को सजा सुना दी गई।
साल 2003 में हाईकोर्ट में अपील की-
विशेष अदालत के इस फैसले के खिलाफ शिव प्रसाद ने साल 2003 में हाई कोर्ट में अपील की। वहां पर इस मामले की सुनवाई चलती रही। इस दौरान याचिकाकर्ता और उसका परिवार कई तरह की मुश्किलों से भी जूझता रहा। दिसंबर 2019 में शिव प्रसाद की मौत हो गई। अब 2021 में शिव प्रसाद को कोर्ट ने उन्हें सभी आरोपों से बरी कर दिया। शिव प्रसाद को न्याय मिल तो गया है, लेकिन इसे देखने के लिए वो जिंदा नहीं हैं।

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