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125th anniversary of Battle of Saragarhi : सारागढ़ी युद्ध की 125वीं वर्षगांठ मनाई गई

अफगानों और सिख सैनिकों के बीच हुयी सारागढ़ी की लड़ाई की 125वीं बरसी पर शनिवार को यहां एक कार्यक्रम का आयोजन किया गया।

सारागढ़ी फाउंडेशन ने शिरोमणि गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (एसजीपीसी) के सहयोग से इस समागम का आयोजन किया था। अकाल तख्त के जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने 'सारागढ़ी मार्च' में शिरकत की ।

सारागढी की लड़ाई 1897 में अफगानों और 36वीं सिख रेजिमेंट के 21 सैनिकों तथा एक खानसामा के बीच लड़ी गई थी, जो समाना रिज (अब पाकिस्तान में) पर तैनात थे।

सैनिकों को सारागढ़ी की रक्षा का काम सौंपा गया था जोकि लॉकहार्ट किले और गुलिस्तान किले के बीच संचार को सुनिश्चित करने वाली एक प्रेक्षण चौकी थी। इस चौकी पर करीब 10,000 अफगानों ने हमला किया जिनसे भीषण युद्ध करते हुए सिख जवानों ने अपने प्राणों की आहुति दे दी ।

समागम को संबोधित करते हुए एसजीपीसी प्रमुख हरजिंदर सिंह धामी ने कहा कि सारागढ़ी की लड़ाई सिख सैनिकों की बहादुरी का एक उत्कृष्ट उदाहरण है।

उन्होंने कहा, ‘‘सिखों ने हमेशा अपने इतिहास से प्रेरणा लेकर महान बलिदान दिए हैं, लेकिन यह दुखद है कि आज अपने ही देश में अल्पसंख्यकों का दमन किया जा रहा है।’’

धामी ने दावा किया कि वर्तमान में ‘‘सिखों का अल्पसंख्यक दर्जा छीनने’’ के लिए ‘‘साजिश’’ की जा रही है, लेकिन समुदाय इस तरह के शरारती कृत्यों को सफल नहीं होने देगा।

उन्होंने कहा कि सिख समुदाय का गौरवशाली इतिहास वर्तमान समय की चुनौतियों का सामना करने का रास्ता दिखाता है और हर सिख को इस इतिहास को अगली पीढ़ी तक ले जाना चाहिए।

पंजाब के मंत्री इंदरबीर सिंह निज्जर ने समारोह को संबोधित करते हुये कहा कि सिख इतिहास युवाओं के लिए मार्गदर्शक है।

उन्होंने कहा कि पंजाब स्कूल शिक्षा बोर्ड के पाठ्यक्रम में सारागढ़ी इतिहास को शामिल करने का प्रयास किया जाएगा।

पूर्व थल सेनाध्यक्ष जनरल जोगिंदर जसवंत सिंह (सेवानिवृत्त) ने कहा कि यह लड़ाई दुनिया की शीर्ष 10 प्रमुख लड़ाइयों में शामिल है, क्योंकि इस युद्ध के दौरान केवल 21 सिख सैनिकों ने 10,000 कबायलियों का मुकाबला किया था।