लुधियाना : पंजाब की धूल-मिटटी में पैदा होने वाले युवा खिलाड़ी राजबीर सिंह ने सरकारी सहूलतें ना मिलने के बावजूद अपने ही दम पर चुनौती कबूल करते हुए कब सोने के तगमे भारत की झोली में डाल दिए कि उसे देखकर हर मौजूद शख्स सैलूट कर रहा है। हालांकि सरकारों द्वारा खेल को बढ़ावा देने और खिलाडिय़ों को सुविधाएं देने के दावों की कड़वी सच्चाई विशेष ओलंपिक्स वल्र्ड समर गेमस में दो गोल्ड मैडल्स जीतने वाले 17 साल के राजबीर सिंह की दयनीय स्थिति बयां करने के लिए काफी है।
2015 में अमेरिका के लॉस ऐंजलस में आयोजित स्पैशल ओलंपिक्स वल्र्ड समर गेमस में साइकलिंग के 1 किलोमीटर व 2 किलोमीटर इवेंटस देश का नाम रोशन करते हुए, दो गोल्ड मैडल्स जीतने वाले राजबीर को सरकारों के खोखले दावों के चलते अपने राजगीर मिस्त्री का काम करने वाले अपने पिता बलबीर सिंह के साथ मजदूरी करनी पड़ी। जिन्हें तब लुधियाना के हंबड़ां रोड स्थित गांव बारनहाड़ा में गुरप्रीत सिंह द्वारा चलाई जाने वाली मनुखता दी सेवा सोसाइटी का साथ मिला और उन्होंने राजबीर की हालत सुधारने में मदद की। राजबीर जो सही तरीके से बोल भी नहीं पाता, मगर दिल में 2019 में एक बार फिर से गोल्ड मैडल जीतने की इच्छा है। राजबीर को सिर्फ इतना याद है कि वह अमेरिका में ओलपिंक्स खेला था। गांव लुधियाना के प्रसिद्ध राढ़ा साहिब के पास मंडी अहमदगढ़ क्षेत्रा गांव सियाड़ में उसका घर है। सपना सिर्फ उसकी साइकिल है और चाहता है, 2019 में एक बार फिर से गोल्ड मैडल जीतना।
वहीं पर, गुरप्रीत सिंह के मुताबिक जिला लुधियाना के अहमदगढ़ मंडी क्षेत्र में गांव सियाड़ का रहने वाला राजबीर उन्हें करीब चार माह पहले मिला था। दरअसल उनके एक दोस्त के जहां राजबीर व उसका पिता काम कर रहे थे। उनके मित्र को जब राजबीर की सच्चाई का पता चला, तो उन्होंने उसे बताया। इसके बाद वे राजबीर को अपने पास ले आया। पतली आर्थिक हालत के चलते राजबीर को उचित आहार भी नहीं मिल रहा था। उन्होंने अपनी मनुखता दी सेवा सोसाइटी में राजबीर को रखा और तब से वह यहां सेवा कर रहा है। उन्होंने राजबीर को एक साइकिल भी लेकर दिया है। उन्होंने दावा किया कि राजबीर को लेकर उन्होंने डिप्टी कमिश्रर तक से संपर्क किया, लेकिन किसी ने उसकी हालत पर ध्यान नहीं दिया।
राजबीर के पिता बलबीर सिंह ने बताया कि 2015 में स्पैशल ओलंपिक्स में गोल्ड मैडल जीतने वाले राजबीर को तब पंजाब सरकार ने 15 लाख रुपए प्रति गोल्ड मैडल के हिसाब से 30 लाख रुपए की ईनाम राशि देने का ऐलान किया था। इसके अलावा, तत्कालीन मुख्यमंत्री प्रकाश सिंह बादल के मलौद दौरे के दौरान एक मुलाकात में उन्होंने उसे एक लाख रुपए ईनाम राशि देने का ऐलान किया था। मगर अफसोस है कि एक लाख रुपए में से उन्हें सिर्फ 50 हजार रुपए का चैक मिला और वह राशि हासिल करने के लिए उन्हें सरकारी दफ्तरों के चक्कर काटने पड़े। जबकि तब केन्द्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखने पर उसे 10 लाख रुपए दिए गए थे।
इस दौरान वे कैबिनेट मंत्री नवजोत सिंह सिद्धू, विधायक बैंस बंधुओं सहित कई नेताओं-अधिकारियों से मिल चुके हैं, लेकिन उनके हाथ खाली हैं। लेकिन इन सब हालातों के बावजूद, उन्होंने कहा कि राजबीर उनके लिए भगवान का एक विशेष तोहफा है, जिसने शारीरिक चुनौतियों के बावजूद खुद को साबित किया, मगर अफसोस यह है कि सरकारी नीतियों के चलते एक उमदा खिलाड़ी आज दयनीय स्थिति में है। वह चाहते हैं कि सरकार द्वारा उसे मदद दी जाए, ताकि वह 2019 में आबुधबी में होने वाले विशेष ओलंपिक्स में देश व राज्य का नाम रोशन कर सके।
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– रीना अरोड़ा