1984 के सिख दंगा मामले के दो आरोपियों को अदालत से दोषी ठहराये जाने के साथ ही दिल्ली में लगभग दो हजार सिखों की मौत से जुड़े इस मामले की जांच की गति पर एक बार फिर बहस तेज हो गयी है। पिछले 35 साल से सिख दंगा मामले में न्याय की कानूनी लड़ाई लड़ रहे वरिष्ठ वकील एचएस फुल्का का मामना है कि अगर इस मामले की समय रहते जांच मुकम्मल कर वास्तविक दोषियों को सजा मिल पाती तो देश में मुंबई और गुजरात जैसे सांप्रदायिक दंगे नहीं होते। पेश हैं फुल्का से भाषा के पांच सवाल ..
1 प्रश्न : सिख दंगा मामले के दो आरोपियों को दोषी ठहराने में 35 साल लग गये। जांच की गति के लिहाज से इस फैसले को आप किस तरह देखते हैं?
उत्तर : दोषसिद्धि का यह पहला मामला नहीं है। इससे पहले 2013 में एक पूर्व विधायक और पूर्व निगम पार्षद को भी अदालत ने दोषी ठहराया था। इस मामले की जांच में अभी तक सिर्फ भीड़ में शामिल लोग ही कानून के शिकंजे में आ पाये हैं। पिछली सदी के सबसे भयानक सांप्रदायिक दंगे की साजिश रचने वाले बड़े नेता अभी भी कानून के फंदे से बाहर हैं। यह सही है कि इस फैसले को आने में 35 साल लग गये लेकिन हम नाउम्मीद बिल्कुल नहीं हैं।
2 प्रश्न : मामले में जांच की मौजूदा गति को देखते हुये मुख्य साजिशकर्ताओं, जिन्हें आप ‘बड़े नेता’ बता रहे हैं, को कानून के शिकंजे में लाने के प्रति कितने आशावान हैं?
उत्तर : मैंने पहले ही कहा कि जांच की गति धीमी है लेकिन यह मामला किसी एक व्यक्ति या व्यक्तियों के साथ अन्याय का नहीं है, बल्कि अल्पसंख्यक समुदाय के हजारों निर्दोषों की मौत का मामला है और इसमें शामिल लोगों की फेहरिस्त बहुत ताकतवर लोगों से भरी पड़ी है। इसलिये कानूनी प्रक्रिया को वे लोग लंबित जरूर कर सकते हैं और लंबित किया भी जा रहा है लेकिन इसी मामले में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सज्जन कुमार की शिनाख्त पुष्ट होने के बाद अब हमारी यह उम्मीद बढ़ गयी है कि जल्द ही सज्जन कुमार सहित अन्य बड़े आरोपी भी कानून के शिकंजे में होंगे।
3 प्रश्न: अकेले दिल्ली में दो हजार से अधिक लोग सिख दंगे के शिकार हुये थे। अभी सिर्फ दो मृतकों के मामले में दो लोगों को दोषी ठहराया जा सका। यह लड़ाई कितनी लंबी चलेगी?
उत्तर : बेशक यह लड़ाई लंबी ही चलेगी। हम इसके लिये तैयार हैं। क्योंकि 1984 का सिख दंगा, ऐसा पहला मामला था जिसमें अकेले दिल्ली में 2733 बेकसूरों की मौत के साजिशकर्ताओं को सरकार में बड़े ओहदों से नवाजा गया और चुनाव भी जीते गये। सियासत और सत्ता की बेशुमार ताकत ही इस मामले में न्याय की देरी के लिये जिम्मेदार है। अगर समय रहते इस मामले में वास्तविक दोषियों को कानून के फंदे तक पहुंचाया जाता तो चुनावी फायदे के लिये सांप्रदायिक दंगे करवाने की सियासत देश में शुरु नहीं होती और ना ही मुंबई और गुजरात जैसे भीषण सांप्रदायिक दंगे होते।
4 प्रश्न : ताजा फैसले से सिख दंगा मामले में दिल्ली पुलिस की जांच एक बार फिर संदेह के घेरे में आ गयी है। दिल्ली पुलिस द्वारा इस मामले को बंद करने के बाद विशेष जांच दल (एसआईटी) की जांच में दोबारा खोला गया। क्या अब एसआईटी की जांच ही न्याय की आखिरी उम्मीद है?
उत्तर : यह स्पष्ट करना जरूरी है कि इस मामले में दो एसआईटी कार्यरत हैं। पहली केन्द्रीय गृह मंत्रालय द्वारा 2015 में गठित एसआईटी, जो दिल्ली के 12 मामलों की जांच कर रही है। इनमें से पांच में आरोपपत्र दाखिल हो गया है और सात में जांच चल रही है। दूसरी एसआईटी उच्चतम न्यायालय द्वारा इस साल जनवरी में गठित हुयी जो 186 मामलों में जांच कर रही है। शीर्ष अदालत की निगरानी में जांच शुरु होने के बाद ही ‘बड़ी मछलियों’ की परेशानी बढ़ना शुरु हुई है। अब हमें उम्मीद है कि सभी मामलों में जल्द फैसले आयेंगे।
5 प्रश्न: अदालत द्वारा दो लोगों को दोषी ठहराने के फैसले पर आपकी अपनी पार्टी ‘आप’ में विरोध के स्वर उठने लगे। आप विधायक देवेन्द्र सहरावत ने इसे राजनीति से प्रेरित फैसला बताया है। आप इसे किस रूप में देखते हैं?
उत्तर: सिख दंगा मामले में मैं खुद को सिर्फ बतौर वकील देखता हूं। वैसे भी मेरे पास अभी पार्टी का कोई पद नहीं है। मैं इस मामले में पार्टी से दूरी बना कर रखता हूं। जहां तक सेहरावत के बयान का सवाल है तो उन्हें पार्टी पहले ही निलंबित कर चुकी है।