लुधियाना-अमृतसर : श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी गुरबचन सिंह ने सिडनी के आस्ट्रल शहर की गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान द्वारा संगत को पंगत के स्थान पर कुर्सियों पर बैठकर लंगर छकने के लिए मजबूर करने के मामले का सख्त नोटिस लिया है। आज जारी एक बयान में जत्थेदार ज्ञानी गुरबचन सिंह ने कहा कि सिडनी के गुरूद्वारा साहिब आस्ट्रल के प्रबंधकों को पहले भी 2 बार मीडिया द्वारा सूचित किया जा चुका है, परंतु प्रबंधकों के कानों पर कोई जू नहीं सरकी। सिंह साहिब ने सख्त लफजों में ताडऩा करते हुए गुरूद्वारा साहिब के प्रधान को कहा कि जो आदमी गुरू साहिब द्वारा दिए गए सिद्धांत, ‘पहले पंगत पाछे संगत’ को नहीं मानता और संगत को ना मानने के बारे में कहता है और गुरू की संगत के प्रति आपतिजनक शब्दावली बोलता है, वह कभी भी सच्चा सिख नहीं हो सकता।
जत्थेदार ने कहा कि जो प्रधान गुरूद्वारा साहिब के नोटिस बोर्ड के ऊपर लिखकर संगत को निर्देश देता है कि लंगर कुर्सियों पर बैठकर छका जाएं, यह नादरशाही फरमान गुरू का सिख कदाचिप नहीं मान सकता और ना ही गुरू के सिख इस प्रकार के फरमान को मानें। सिडनी से गुरू की संगत द्वारा बार-बार अकाल तख्त पर टेलीफोन और ईमेल के जरिए शिकायतों का अंबार लगा हुआ है। उन्होंने कहा कि गुरूद्वारा साहिब का प्रधान संगत को पंगत में बैठकर परसादा छकने से रोकता है और गुरूद्वारा साहिब से बाहर हो जाने की हिदायतें देता है।
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उन्होंने यह भी कहा बड़ी आश्चर्य बात है कि सिखों ने तो अपने धर्म प्रचार करने के लिए अपने धर्म की परंपराओं के बारे में दूसरे लोंगों को बताना था परंतु इस प्रकार के लोग अपने धर्म का प्रचार करने की बजाए दूसरे धर्म में आप बदल रहे है। सिंह साहिब ने यह भी कहा कि लंगर की मर्यादा प्राचीन रिवायतों के मुताबिक गुरूद्वारा साहिब में रखी जाएं। अगर प्रधान ऐसा नहीं करता तो गुरूद्वारा साहिब की कमेटी के ऊपर धार्मिक मर्यादा के मुताबिक सख्त कार्यवाही की जाएंगी। इसलिए लंगर की मर्यादा को कायम रखते सिखी परंपरा के मुताबिक लंगर पंगत में ही छका जाएं। उन्होंने यह भी कहा कि गुरू घर में लंगर की मर्यादा को भूख मिटाने की तृप्ति के साथ-साथ इसके धार्मिक, अध्यात्मिक और सामाजिक सरोकार को भी समझना जरूरी है।
स्मरण रहे कि इसी गुरूद्वारे में पहले से ही संगत के लिए कुर्सियां और मेजे लगी हुई है, जिसमें जूते पहने हुए ही लंगर ही छका जाता है। अप्रेल 2016 में इस गुरू घर के सचिव ने एक प्रेस नोट जारी किया था जिसमें उसने जमीन पर पंगत में लंगर छकने के नुकसान हो सकने की बातें की थी। जत्थेदार के मुताबिक गुरु साहिबान ने पंगत में बैठकर जमीन पर लंगर छकने की परम्परा शुरू की थी न कि मेज-कुर्सी पर बैठकर। यहां तक कि राजा अकबर ने भी गुरु साहिबान द्वारा शुरु की गई परम्परा का पालन करते हुए पंगत के साथ बैठकर जमीन पर ही लंगर छका था।
उन्होंने कहा कि केवल विकलांग , नीचे बैठ पाने में असमर्थ वृद्ध को ही विशेष परिस्थिति में इस तरह की छूट दी जा सकती है। उन्होंने कहा कि प्रबंधक कुर्सी पर बैठकर लंगर छकने की हिदायत देकर सिख सिद्धांतों, परम्परा व मर्यादा का घोर उल्लंघन कर रही है, इसे कतई बर्दाश्त नहीं किया जा सकता है।
– सुनीलराय कामरेड