लुधियाना-अमृतसर : सिखों की सर्वोच्च संस्था श्री अकाल तख्त साहिब के कार्यकारी जत्थेदार सिंह साहिब ज्ञानी हरप्रीत सिंह समेत एसजीपीसी अध्यक्ष भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने देश की सर्वोच्च अदालत सुप्रीम कोर्ट को वर्ष 1984 के 23 सिख नस्लकुशी के कातिलों को दी गई जमानत के मामले पर पुर्न विचार करने की दुहाई दी है।
इसी के साथ ही श्री अकाल तख्त साहिब के जत्थेदार ने शिरोमणि कमेटी और दिल्ली गुरूद्वारा कमेटी को हिदायत दी है कि एक योगय कानूनी विशेषज्ञों और बुद्धिजीवियों का पैनल बनाकर इन केसों की पैरवी करें, ताकि नस्लकुशी के दोषियों को मिली जमानतें रदद करवाने के साथ उनको कानून के मुताबिक सजा दिलवाई जा सकें।
श्री अकाल तख्त साहिब सचिवालय में पत्रकारों से रूबरू बातचीत करते जत्थेदार ज्ञानी हरप्रीत सिंह ने कहा कि सिख नस्लकुशी के 4 दोषियों को जमानत देने से पूरी सिख कौम के दिलों को गहरी चोट पहुंची है।
उन्होंने यह भी कहा कि पहले सीबीआई द्वारा बरगाड़ी बेअदबी कांड के बारे में दाखिल की गई कलोजर रिपोर्ट से सिखों में काफी रोष है, वही चंडीगढ़ स्थित सीबीआई कार्यालय में इंसाफ की दुहाई देते हुए मांग पत्र देने जा रही सिख जत्थेबंदियों पर पुलिस ने बेरहमी के साथ कार्यवाही करके अश्रुगैस के गोले दागे और पानी की तोपे चलाकर अनेक सिख आगुओं की दस्तारें सडक़ पर बिखेर दी, अब वर्ष 1984 के सिख नस्लकुशी के कातिलों को जमानतेें देकर सिख हृदयों के जख्मों पर नमक लगाने का काम हुआ है, जिससे सिख जगत में काफी रोष पाया जा रहा है।
उधर इसी मामले में शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने कहा कि 1984 का सिख कत्लेआम अमानवीय कुर्कमों की शिखर पर था और इसके दोषियों को जमानत मिलने से पीडि़तों को मानसिक चोट पहुंची है। भाई लोंगोवाल तख्त श्री दमदमा साहिब पहुंचे हुए थे। उन्होंने कहा कि दिल्ली के त्रिलोकपुरी इलाके से संबंधित सिख कत्लेआम के मामले में हाई कोर्ट द्वारा दोषी करार दिए गए लोगों को सुप्रीम कोर्ट में जमानत मिलना अफसोसजनक है और इस पर मानयोग उच्च अदालत को पुन: विचार करना चाहिए।
उन्होंने कहा कि पहले जून 1984 में सच्चखंड श्री हरिमंदिर साहिब पर तत्कालीन कांग्रेस हुकूमत द्वारा तोपों से हमला करना और फिर नवंबर 1984 में दिल्ली समेत अन्य स्थानों पर हुए सिख कत्लेआम को सिख कौम कभी भूल नहीं सकती। उन्होंने कहा कि मानयोग अदालतों द्वारा सिख कत्लेआम और सिखों विरूद्ध हुए अत्याचारों को सामने रखकर ही फैसले करने चाहिए।
– सुनीलराय कामरेड