बीते दिनों पंजाब में विधानसभा चुनाव से पहले अकाली दल को बड़ा झटका लगा है। मनजिंदर सिंह सिरसा ने अकाली दल का साथ छोड़कर बीजेपी का दामन थाम लिया है। जिसपर शिरोमणि अकाली दल (शिअद) ने बुधवार को दावा किया कि मनजिंदर सिंह सिरसा को भाजपा में शामिल होने के लिए मजबूर किया गया। पार्टी ने कहां कि सिरसा दबाव में थे। जिसका जवाब देते हुए भाजपा के सिख नेता मनजिंदर सिंह सिरसा ने शनिवार को शिरोमणि अकाली दल (शिअद) द्वारा लगाए गए आरोपों को खारिज कर दिया।
जिसमें कहा गया था कि भाजपा ने घटिया चाल का इस्तेमाल करते हुए उन्हें पार्टी में शामिल करने के लिए मजबूर किया है। सिरसा ने स्पष्ट किया कि वह समुदाय की सेवा करने के एकमात्र एजेंडे के साथ भाजपा में शामिल हुए हैं और इस पार्टी ने उन्हें एक ऐसा मंच प्रदान किया है जो लंबे समय से लंबित सिख मुद्दों को हल करने में मदद करेगा। सिरसा ने यहां एक बयान में कहा कि वह अकाली नेतृत्व के आरोपों से हैरान हैं। उन्होंने कहा कि अगर भाजपा को उन्हें मजबूर करना होता, तो पार्टी उन्हें दिल्ली सिख गुरुद्वारा प्रबंधन समिति (डीएसजीएमसी) के अध्यक्ष के रूप में शामिल होने के लिए कहती, न कि एक व्यक्ति के रूप में।
उन्होंने कहा कि वह स्वेच्छा से शामिल हुए हैं, क्योंकि इस पार्टी के साथ गठबंधन तोड़ने के बाद, अकाली दल सिख मुद्दों को हल करने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि उनकी मदद करने के लिए कोई नहीं बचा है। भाजपा नेता ने कहा कि उन्होंने अकाली दल को बिना किसी प्रकार के आरोप लगाए छोड़ दिया है। उन्होंने कहा, मैं एक सकारात्मक व्यक्ति हूं जिसका एक मुख्य फोकस है – समुदाय की सेवा करना और यह केवल राष्ट्रीय पार्टी का सदस्य होने से ही संभव है। सिरसा ने कहा कि उनकी खुद से प्रतिबद्धता है कि वह केवल सिख मुद्दों को हल करने और सिख समुदाय की मांगों को पूरा करने पर ध्यान केंद्रित करेंगे और वह किसी के द्वारा लगाए गए बेबुनियाद आरोपों से विचलित नहीं होंगे।
उन्होंने कहा कि अकाली दल एक क्षेत्रीय दल में सिमट गया है, क्योंकि इसका नेतृत्व खुद दावा करता है और यह अखिल भारतीय सिख मुद्दों पर ध्यान केंद्रित नहीं कर रहा है। सिरसा ने कहा कि नई दिल्ली में एक सिख विश्वविद्यालय की स्थापना और सिख छात्रों को नई ऊंचाइयों पर ले जाने में मदद करना उनका लक्ष्य है, और वह भाजपा नेता के रूप में इसी दिशा में काम करेंगे।