पराली जलाने पर रोक के बावजूद राजधानी चंगडीढ़ से महज 20 किलोमीटर दूर पंजाब के इस गांव में खेतों में फसलों के अवशेष जलाने का क्रम अब भी जारी है। पराली को जलाये बिना उसके निस्तारण के उपकरणों की लागत का हवाला देते हुए एक किसान ने कहा, ‘‘हम असहाय हैं।’’
35 वर्षीय किसान ने पंजाब और हरियाणा में पराली जलाने पर रोक को लेकर प्रवर्तन एजेंसियों की कार्रवाई के डर से नाम नहीं बताया। माना जा रहा है कि पराली जलाने की इन घटनाओं की वजह से ही दिल्ली और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में प्रदूषण का स्तर बढ़ा है।
चार एकड़ जमीन पर खेती करने वाले किसान ने कहा कि वह अपने खेतों से पराली हटाने में देरी नहीं कर सकते क्योंकि अगली फसल बोनी होती है।
उन्होंने कहा, ‘‘अगर पराली नहीं जलाई तो गेहूं की बुवाई में देरी हो जाएगी और इससे अंतत फसल प्रभावित होगी।’’ किसान ने कहा कि ‘हैप्पी सीडर’ और अन्य ऐसी मशीनें उनके जैसे छोटे किसान के लिए फायदे का सौदा नहीं हैं। यह मशीन करीब डेढ़ लाख रुपये की आती है। इसके अलावा 65 हॉर्सपॉवर के ट्रैक्टर की जरूरत होती है। कुल मिलाकर आठ लाख रुपये का खर्च आता है जिसे वह वहन नहीं कर सकते।
उन्होंने कहा कि इस तरह की मशीनों सहकारी समितियों द्वारा किराये पर दी जानी चाहिए। भारतीय किसान यूनियन (सिद्धूपुर) के किसान नेता मेहर सिंह थेरी ने पराली जलाये बिना उसके प्रबंधन के लिए सरकार से धान पर 200 रुपये प्रति कुंतल बोनस की मांग की।
उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं हुआ तो किसान पराली जलाते रहेंगे। थेरी ने आरोप लगाया कि पंजाब सरकार किसानों को जुर्माना लगाकर प्रताड़ित कर रही है। उन्होंने हैप्पी सीडर जैसी मशीनों के इस्तेमाल पर संदेह जताया। थेरी ने कहा, ‘‘हैप्पी सीडर का लगातार इस्तेमाल गेहूं की पैदावार को कम करेगा और यहां खेतों में यह बात सामने आई है।’’
हालांकि राज्य सरकार का कृषि विभाग इस दावे को खारिज कर चुका है। गांव के एक किसान ने दावा किया कि पिछले साल इस मशीन के इस्तेमाल के बाद गेहूं की पैदावार 10 कुंतल प्रति एकड़ तक कम हो गयी। पंजाब कृषि विभाग के कुछ अधिकारियों ने कुछ किसान यूनियन नेताओं पर छोटे किसानों को गुमराह करने का आरोप लगाया।