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पंजाब : राजनीतिक दलों के लोकलुभावने वादों के खिलाफ SC में दायर हुई याचिका

विधानसभा चुनावों से पूर्व लोकलुभावने वादों को निष्पक्ष चुनाव की जड़ हिलाने वाला करार देते हुए इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर की गयी।

पंजाब में अगले महीने विधानसभा के लिए चुनाव होने है। इन चुनावों में जीत का परचम लहराने के लिए मतदाताओं को अपने पक्ष में करने के लिए विभिन्न राजनीतिक दल तमाम लोकलुभावन वादों का सहारा ले रहे हैं। इन वादों के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दायर हुई हैं, जिसमें वादों को  निष्पक्ष चुनाव की जड़ हिलाने वाला करार दिया गया है।
बीजेपी नेता एवं अधिवक्ता अश्विनी कुमार उपाध्याय की ओर से पंजाब के संदर्भ में दायर इस याचिका में दावा किया गया है कि चुनाव से पहले सार्वजनिक कोष से मुफ्त उपहारों के तर्कहीन वादों ने मतदाताओं को अनुचित रूप से प्रभावित किया है। इसने निष्पक्ष चुनाव की जड़ को हिलाकर रख दिया है। लिहाजा, सुप्रीम कोर्ट इस मामले में चुनाव आयोग को निर्देश दे कि वह संबंधित दलों के चुनाव चिन्ह जब्त करें तथा उनका पंजीकरण रद्द कर दे।

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अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में राजनीतिक दलों पर गलत लाभ के लिए मनमाने ढंग से या तर्कहीन वादे कर मतदाताओं को अपने पक्ष में लुभाने का आरोप लगाते हुए इसे ‘रिश्वत’ और ‘अनुचित’ रुप से प्रभावित करने के समान माना है। उन्होंने याचिका में राजनीतिक दलों के इन तर्कहीन लोकलुभावन वादों को संविधान के अनुच्छेद 14, 162, 266 (3) और 282 का उल्लंघन बताया गया है।
उपाध्याय ने पंजाब के संदर्भ में कहा कि आम आदमी पार्टी के राजनीतिक वादों को पूरा करने के लिए प्रति माह 12,000 करोड़ रुपये की जरूरत है, शिरोमणि अकाली दल के सत्ता में आने पर प्रति माह 25,000 करोड़ रुपये और कांग्रेस के सत्ता में आने पर 30,000 करोड़ रुपये की जरूरत पड़गी। जबकि सच्चाई यह है कि राज्य में जीएसटी संग्रह केवल 1400 करोड़ है।
याचिकाकर्ता का कहना है कि सच्चाई यह है कि कर्ज चुकाने के बात पंजाब सरकार कर्मचारियों- अधिकारियों के वेतन-पेंशन भी नहीं दे पा रही है तो ऐसे में वह मुफ्त उपहार देने का वादा कैसे पूरा करेगी ? याचिकाकर्ता का कहना है कि कड़वा सच यह है कि पंजाब का कर्ज हर साल बढ़ता जा रहा है। राज्य का बकाया कर्ज बढ़कर 77,000 करोड़ रुपये हो गया है। वर्तमान वित्तीय वर्ष में ही 30,000 करोड़ रुपये का कर्ज है।

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