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पंजाब : डेरा आतंकवाद के नाम पर सियासी रोटियां सेंकने वाले नेताओं को सांप सूंघा

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लुधियाना : पिछले साल फरवरी की विधानसभा चुनावों से पहले 31 जनवरी को बठिण्डा जिले के कस्बा मौड़ मंडी में कांग्रेस के जलसे के दौरान हुए बम विस्फोट के बारे में उस वक्त बिना किसी जांच-पड़ताल और सबूतों के लगभग समस्त सियासी पार्टियों और पंजाब पुलिस ने इस कार्यवाही को अंजाम देने का ठिकरा गर्मख्याली सिख जत्थेबंदियों के खाते में फोड़ते हुए पंजाब की अमन-शांति को भंग करने वाली ताकतों के खिलाफ बड़े-बड़े अखबारी बयान और तकरीरें की थी।

यही नहीं घटना के अगले ही दिन पंजाब पुलिस के प्रमुख ने तो इस घटना के पीछे पड़ोसी मुल्क पाकिस्तान के हाथ होने की भी शंका जाहिर करते हुए इस विस्फोट की घटना को सिख आतंकवादियों के खाते में डाल दी थी और इसी शंका में बहुत से नौजवानों को हिरासत में लेकर पूछताछ भी की गई थी। परंतु अब एक साल बाद जब पंजाब पुलिस की ही बनाई होनहार विशेषज्ञों की टीम ने छानबीन और जांच-पड़ताल के उपरांत इस मौड़ बम धमाके की साजिश और तैयारी डेरा सिरसा के अंदर होने की योजना का पर्दाफाश कर दिया है तो वोटों के लिए गुरमीत राम रहीम के आगे घुटने टेकते रहने वाली पार्टियों के प्रमुखों को सांप सूंघता नजर आ रहा है।

पुलिस ने इस कांड में डेरे के अंदर विस्फोट वाली कार की तैयारी करने वाले 4 गवाहों के भी तलवंडी साबों की अदालत में बयान कलमबद्ध करवा दिए है और बाबे के खासमखास 2 तथाकथित साधु व पूर्व अंगरक्षक अमरीक सिंह और गुरतेज सिंह काला नामक डेरा मुलाजिमों को भी नामजद करते हुए केंद्रीय गृह मंत्रालय ने संज्ञान लेते हुए लुकआउट सर्कुलर जारी किया है। इतना कुछ सामने आने के बावजूद किसी भी सियासी पार्टी या आगु ने इस बारे में जुबां खोलने की हिम्मत नहीं दिखाई। दरअसल पंजाब और हरियाणा की सियासी पार्टियां डेरा सिरसा के वोट हासिल करने के लिए गुरमीत राम रहीम के आगे दंडवत प्रणाम करती रही है। वर्ष 2007 की विधानसभा चुनावों में सरेआम डेरे द्वारा कांग्रेस का समर्थन किया गया था और फिर 2015 में हरियाणा की विधानसभा चुनावों में डेरे द्वारा भाजपा की हिमायत की गई और अब 2017 की पंजाब विधानसभा चुनावों में डेरे के सियासी विंग द्वारा अकाली भाजपा गठजोड़ का सरेआम समर्थन किया था। हालांकि खुलेआम समर्थन हासिल करने के बाद सिखों की सर्वोच्च धार्मिक संस्था श्री अकाल तख्त साहिब पर 42 के करीब सिख उम्मीदवारों को हुकमनामे के तहत धार्मिक तन्ख्वाह लगाई गई थी।

इस बात की कोई शंका नहीं कि 2015 में गुरू ग्रंथ साहिब जी की बेअदबी के विरोध में रोष जब पंजाब की सडक़ों पर उठा था तो श्री अकाल तख्त साहिब से गुरमीत राम रहीम को दी गई माफी के पीछे भी अकाली लीडरशिप का हाथ था और सिख संगत के गुस्से के आगे झुकते हुए एक बार फिर गुरमीत राम रहीम को दी गई माफी का फैसला वापिस लिया गया। साल 2007 में बठिण्डा के नजदीक सलाबतपुरा में दशमगुरू का स्वांग रचाने की घटना और 2015 में घटित बहिबलकलां की घटना तक अकाली-भाजपा गठजोड़ की सरकार वोटों के लालच में कभी भी गुरमीत राम रहीम की तरफ आंख उठाकर नहीं देख सक ी बल्कि उसकी सरगर्मियों का विरोध करने वाली सिख संगत को सरकारी डंडे का दर्द सहना पड़ा। 2007 की स्वांग रचाने वाली घटना में गुरमीत राम रहीम के ऊपर बठिण्डा में मामला दर्ज हुआ।

पंजाब सरकार द्वारा उसे वापिस लेने में डेरा आतंकवाद को बढ़ाने में शह दी। कई साल पंजाब में ऐसे हालात रहे कि डेरा प्रेमी कही भी नाम चर्चा के नाम पर इकटठ करते थे तो पंजाब पुलिस हथियारों और लाठियों समेत पहरे पर बिठा दी जाती थी। अगर सिख संगत रोष करते तो पुलिस के गुस्से का शिकार होना पड़ता। इस मामले की जांच में लगे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने कहा कि पंजाब के लोगों ने इतना लंबा वक्त डेरा आतंकवाद का शिकार रहना पड़ा और यह डेरा आतंकवाद किसी और ने नहीं बल्कि सियासी नेताओं द्वारा पैदा किया गया था।

– सुनीलराय कामरेड

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