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बिजली संशोधन विधेयक पारित होने पर तीन साल में समाप्त होगी सब्सिडी

बिजली आपूर्ति करने को विवश होगी और घाटा उठाएगी। उन्होंने कहा कि घाटे के नाम पर बिजली बोर्डों के विघटन का प्रयोग पूरी तरह असफल साबित हुआ है। 

बिजली संशोधन विधेयक 2018 पारित हुआ तो तीन साल में सब्सिडी और क्रास सब्सिडी समाप्त हो जाएगी जिससे बिजली मंहगी हो जाएगी। ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन के प्रवक्ता विनोद कुमार गुप्ता ने शुक्रवार को कहा कि बिजली संशोधन विधेयक पारित होने पर सब्सिडी और क्रास सब्सिडी तीन साल में समाप्त हो जाएगी जिसका सीधा अर्थ है कि किसानों और आम उपभोक्ताओं की बिजली महंगी दर पर मिलेगी। जबकि उद्योगों एवं व्यावसायिक संस्थानों की बिजली दरों में कमी की जाएगी। उन्होंने कहा कि संशोधन के अनुसार हर उपभोक्ता को बिजली लागत का पूरा मूल्य देना होगा जिसके अनुसार बिजली की दरें 10 से 12 रुपये प्रति यूनिट हो जाएंगी।

श्री गुप्ता ने बताया कि बिजली संशोधन विधेयक के जनविरोधी प्रतिगामी प्राविधानों का नेशनल कोआर्डिनेशन कमेटी ऑफ इलेक्ट्रिसिटी इम्पलॉईस एंड इन्जीनियर्स (एनसीसीओईईई) और ऑल इण्डिया पॉवर इन्जीनियर्स फेडरेशन पहले से ही इसका विरोध करता रहा है। उन्होंने कहा कि एनसीसीओईईई के निर्णय के अनुसार बिजली (संशोधन) विधेयक 2018 एवं केंद्र एवं राज्य स्तर पर चल रही निजीकरण की कार्यवाही के विरोध में तथा पुरानी पेंशन हेतु देश के लगभग 15 लाख बिजली कर्मचारी और इंजीनियर आगामी आठ और नौ जनवरी को दो दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल / कार्य का बहिष्कार करेंगे। उन्होंने कहा कि बिजली उत्पादन के क्षेत्र में निजी घरानों के घोटाले से बैंकों का ढाई लाख करोड़ रुपये पहले ही फंसे हुए हैं फिर भी निजी घरानों पर कोई कठोर कार्यवाही करने के बजाय केंद्र सरकार नए विधेयक के जरिये बिजली आपूर्ति निजी घरानों को सौंप कर और बड़ घोटाले की तैयारी कर रही है। उन्होंने कहा कि विधेयक के अनुसार बिजली वितरण और विद्युत् आपूर्ति के लाइसेंस अलग अलग करने तथा एक ही क्षेत्र में कई विद्युत् आपूर्ति कम्पनियाँ बनाने का प्राविधान है।

विधेयक के अनुसार सरकारी कंपनी को सबको बिजली देने (यूनिवर्सल पावर सप्लाई ऑब्लिगेशन ) की अनिवार्यता होगी जबकि निजी कंपनियों पर ऐसा कोई बंधन नहीं होगा। उन्होंने कहा कि स्वाभाविक है कि निजी आपूर्ति कम्पनियां मुनाफे वाले बड़ वाणिज्यिक और औद्योगिक घरानों को बिजली आपूर्ति करेंगी जबकि सरकारी क्षेत्र की बिजली आपूर्ति कंपनी निजी नलकूप, गरीबी रेखा से नीचे के उपभोक्ताओं और लागत से कम मूल्य पर बिजली दर के घरेलू उपभोक्ताओं को बिजली आपूर्ति करने को विवश होगी और घाटा उठाएगी। उन्होंने कहा कि घाटे के नाम पर बिजली बोर्डों के विघटन का प्रयोग पूरी तरह असफल साबित हुआ है।

श्री गुप्ता ने बताया कि एनसीसीओईईई की मुख्य माँग बिजली (संशोधन) विधेयक को वापस लेना, इलेक्ट्रिसिटी एक्ट 2003 की पुनर्समीक्षा और राज्यों में विघटित कर बनाई गयी बिजली कंपनियों का एकीकरण कर बिजली उत्पादन, पारेषण और वितरण का केरल और हिमाचल प्रदेश की तरह एक निगम बनाना है। उन्होंने कहा कि इलेक्ट्रिसिटी संविधान की समवर्ती सूची में है और राज्य का विषय है किन्तु यदि बिजली (संशोधन) विधेयक पारित हो गया तो बिजली के मामले में केंद्र का वर्चस्व बढ़गा और राज्यों की शक्ति कम होगी इस दृष्टि से भी जल्दबाजी करने के बजाये संशोधन विधेयक पर राज्य सरकारों, बिजली उपभोक्ताओं और बिजली कर्मचारियों की राय ली जानी चाहिए।

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