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सिखों के पहरावे का जरूरी हिस्सा है दस्तार- भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल

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लुधियाना-अमृतसर : दस्तार (पगड़ी) सिखों की आन-बान-शान ही नही बल्कि दस्तार का इतिहास बहुत पुराना है। अफगान से लेकर मुगल काल तक और फिर सिख पंथ तक दस्तार आई तो दस्तार की लोकप्रियता और विश्वासनीयता बढ़ गई। सिखों ने दस्तार सिर्फ शौक के लिए सिर पर सजाई बल्कि इसके पीछे और भी कई कारण थे।

गुरू साहिबान ने सिखों को दस्तार की महत्वता का ब्याखान किया और यह आज सिखों के पहरावे का अति आवश्यक हिस्सा है और इसे सिख रहित मर्यादा में स्पष्ट तौर पर अंकित किया गया है। सिख खिलाडिय़ों को दस्तार के अतिरिक्त अन्य सुरक्षा साधनों के उपयोग के लिए मजबूर करना किसी भी प्रकार से जायज़ नहीं है। उक्त शब्दों का प्रकटावा सिखों की सर्वोच्च शिरोमणि गुरूद्वारा प्रबंधक कमेटी के प्रधान जत्थेदार भाई गोबिंद सिंह लोंगोवाल ने एक सिख साइकिलस्ट की पाटीशन के संबंध में सुप्रीम कोर्ट द्वारा किए गए सवाल के पश्चात कहा।

स्मरण रहे कि दिल्ली के सिख साइकिलस्ट स. जगदीप सिंह पुरी ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा एक स्थानीय साइकिलंग एसोसिएशन की तरफ से हेलमेट पहनने के लिए लाजिमी शर्त को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी थी, जिसपर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया कि दस्तार सिख के लिए लाजिम है या केवल सिर छुपाने का एक साधन? सुप्रीम कोर्ट के एस.ए. गोड़वे और एल.एन राउ की एक बैंच ने कहा था कि खेल कार्यक्रम में खिलाड़ी को चोट लगने का खतरा रहता है। अगर खिलाड़ी को चोट लगे तो समस्त दोष आयोजकों के माथे मड़ दिया जाता है।

प्रतिक्रिया स्वरूप भाई लोंगोवाल ने कहा कि दस्तार सिखों की शान है और यह सिख पहचान के साथ-साथ सुरक्षा भी प्रदान करती है। दरअसल सिख साइकिलस्ट स. जगदीप सिंह को हेलमेट ना पहनने से आयोजकों ने उसे मुकाबले में हिस्सा नहीं लेने दिया था। दस्तारधारी सिख को हेलमेट पहनने की कोई आवश्यकता नहीं। उन्होंने इतिहास के पन्नों का हवाला देते हुए कहा कि विश्व युद्धों के दौरान भी सिख दस्तार सजाकर लड़ते रहे है।

उन्होंने यह भी कहा कि सिखों की दस्तार के संबंध पर किसी को धोखा नहीं है क्योंकि देश के रह चुके प्रधानमंत्री और राष्ट्रपति भी दस्तार सजाते रहे है। इस के अतिरिक्त विदेशों के अंदर भी सिख आज भी सरकारों का हिस्सा बने हुए है। शिरोमणि कमेटी के प्रधान ने कहा कि देश के अंदर सिखों की दस्तार जिंद-जान से भी प्यारी है।

– सुनीलराय कामरेड 

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