पंजाब में इन दिनों एक साधारण सी लड़ाई ने हिसंक रुप ले लिया है जिसकी वजह से पंजाब सांंप्रदायिक दंगो का रुप ले रहा है। अब सवाल उठ रहे हैं कि आखिर वो कौन है जिसके लिए अमृतपाल के समर्थक इकट्ठा होकर पंजाब पुलिस पर हमला कर रहे है वहां थाने को घेरकर पुलिस वालों को धमकी दी जा रही है। बड़ी तादाद में यहां समर्थक जुटे है। जिनके पास तमाम तरह के हथियार तलवार भी है जिससे वो पुलिस पर हमला कर रहे है। इस पूरे मामले को लेकर बात करें तो पूरा बवाल लवप्रीत तूफान को लेकर शुरु हुआ। जिसे पंजाब पुलिस ने हिरासत में लिया जिसके बाद ही 23 फरवरी को अमृतसर में जमकर बवाल हुआ अमृतपाल के हजारों समर्थक अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर पहुंचे और तलवारें लहराई गईं।
23 फरवरी को अमृतसर में हुआ था बवाल
धीरे धीरे इस भीड़ ने दंगे का रुप ले लिया। इनके आगे पुलिस भी कमजोर पड़ गई आपको बता दें जीस लवप्रीत को लेकर दंगे हो रहे है वो किडनैपिंग और मारपीट के मामले में आरोपी है। मामले को लेकर बात करें तो चमकौर साहिब वरिंदर सिंह को अगवा करने और उसके साथ मारपीट करने के आरोप में वारिस पंजाब दे संगठन के प्रमुख अमृतपाल और उसके साथियों के खिलाफ शिकायत दी गई। जिसके बाद पुलिस हरकत में आई। और इस मामले में अमृतपाल के करीबी लवप्रीत तूफान को पुलिस ने पूछताछ के लिए हिरासत में लिया। जिसके बाद लड़ाई कि शुरुआत हुई।
लवप्रीत तूफान को हिरासत में लेने के बाद हुए दंगे
लवप्रीत तूफान को हिरासत में लिए जाने के बाद अमृतपाल के समर्थक जुटने लगे थे। थोड़ी देर बाद अमृतसर के अजनाला पुलिस स्टेशन के बाहर सैकड़ों की संख्या में लोग पहुंच गए। बातया जा रहा है इस दौरान पुलिस काफी कम संख्या में मौजूद थी जिसका फायदा उठाकर अमृतपाल के समर्थक बैरिकेडिंग तोड़कर आगे बढ़े, इस दौरान कई लोगों के हाथों में तलवारें नजर आईं जिन्हें वो लहरा रहे थे। उनकी मांग थी कि तूफान को जल्द से जल्द रिहा किया जाए। माहौल देख पुलिस को इन प्रदर्शनकारियों के आगे झुकना पड़ा और रिहाई के लिए तैयार हो गए।
लवप्रीत तूफान और अमृतपाल कौन है
अब कई लोग जानना चाहते है कि लवप्रीत तूफान कौन है जिसकी रिहाई के लिए पूरा पुलिस स्टेशन ही घेरा गया। दरअसल लवप्रीत को अमृतपाल का काफी करीबी माना जाता है। और अमृतपाल सिंह खालिस्तानी समर्थक है। उसके साथ सैंकड़ो चाहने वाले लोग है। वो साफ तौर पर कहता है कि खालिस्तानी आंदोलन को उनकी तरफ से शांतिपूर्ण तरीके से आगे बढ़ाया जा रहा है।
अमृतपाल वारिस पंजाब दे की कमान संभालता है
अमृतपाल ने लाल किला हिंसा के आरोपी और एक्टर दीप सिद्धू के संगठन वारिस पंजाब दे की कमान संभाली है। लवप्रीत तूफान को इसी अमृतपाल का राइट हैंड माना जाता है। तूफान के खिलाफ किडनैपिंग मारपीट और ऐसे ही कई मामले दर्ज हैं। लवप्रीत तूफान पंजाब के गुरदासपुर का रहने वाला है। इस मामले में बड़ी बात ये है कि अमृतपाल के पिछे कौन सी ताकत है जो वो सरेआम पुलिस को धमकी दे रहा सरकार पर हमले की बात कर रहा है। इस बीच भगवंत मान सरकार पर भी तमाम तरह के आरोप लग रहे हैं क्योंकि जो दंगे हो रहे सरकार उसे कंट्रोल नहीं कर पा रही है।
खालिस्तान की मांग का इतिहास
पंजाब में खालिस्तान की लंबे समय से मांग उठती रही है इसका अपना इतिहास है जिस खालिस्तान को लेकर इतना बवाल होता रहा है उस खालिस्तान की बात करना भी जरुरी है इसके इतिहास की लंबी कहानी है । जिसकी शुरुआत होती है कांग्रेस के अधिवेशन से। 31 दिसंबर 1929 को लाहौर में कांग्रेस का एक अधिवेशन हुआ इस अधिवेशन में मोतीलाल नेहरू ने ‘पूर्ण स्वराज्य’ की मांग की कांग्रेस की इस मांग का तीन समूहों ने विरोध किया। इसमें एक मोहम्मद अली जिन्ना का मुस्लिम लीग। दूसरा भीमराव अंबेडकर की अगुवाई वाला दलित समूह। और तीसरा था मास्टर तारा सिंह का शिरोमणि अकाली दल। बता दें तारा सिंह ने ही पहली बार सिक्खों के लिए अलग राज्य की मांग की थी। आजादी के बाद भारत का बंटवारा हुआ और पाकिस्तान अलग देश बना इससे पंजाब भी दो हिस्सों में बंट गया। एक हिस्सा पाकिस्तान के पास गया और दूसरा हिस्सा भारत के पास आया । इसके बाद 1969 जगजीत सिंह चौहान ने खालिस्तान आदोलन की मांग की खालिस्तान का मतलब था खालसाओं का देश। इसके बाद 1978 में जरनैल सिंह भिंडरावाले की एंट्री होती है ।
भिंडरावाले खालिस्तान विवाद का अहम हिस्सा
वो भड़काउ भाषण देते हैं जिसके बाद से खालिस्तान की मांग को लेकर दंगे बढने लगते है दंगो को बढता हुआ देख 1984 में इंदिरा गांधी भिंडरावाले को मारने के लिए ब्लू स्टार आपरेशन चलाया जिसके बाद स्वर्ण मंदिर की घेराबंदी होती है और भिंडरावाले को मार दिया जाता है। इस आपरेशन में पुलिसवालों के साथ कई लोगों की मौत हो जाती है ।इंदिरा गांधी का विरोध पुरे देश में होता है।
भिंडरावाले की मौत का बदला इंदिरा गांधी से लिया गया
भिंडरावाले की मौत का बदला लेने के लिए 1984 को इंदिरा गांधी के सिख गार्ड उन्हें गोली से भूंज देते है । इंदिरा गांधी की मौत के बाद दिल्ली समेत पूरे भारत में सिख दंगे होते हैं और इसमें 3350 सिक्खों की मौत हो जाती है इनमें से सिर्फ दिल्ली में 2733 सिक्खों की मौत होती है। इसके बाद 10 अगस्त 1986 को ऑपरेशन ब्लू स्टार को लीड करने वाले पूर्व सेना प्रमुख जनरल को भी मार दिया जाता है।