मुसीबत की घड़ी में हर छोटी या बड़ी मदद अपना अलग ही महत्त्व रखती है। कोरोना महामारी की दूसरी लहर से जूझ रहे भारत में अपने और अपनों की मदद के आलावा दूसरों की मदद के लिए भी लोग आगे आ रहे हैं। मदद का एक ऐसा ही उदाहरण राजस्थान से सामने आया है, जहां 10वीं क्लास के एक छात्र ने ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स खरीदने के लिए 6 लाख 65 हज़ार रुपए जमा किए।
महज दो हफ्ते से कम समय के भीतर एक उचित पहल के लिए इस रकम को जुटाने वाले छात्र को उनके दोस्त, परिवार के सदस्य, दोस्तों के माता-पिता और अंजान लोगों सहित 150 से अधिक लोगों का साथ मिला। इस तरह से अब इन पैसों से कोविड-19 की मार झेल रहे राजस्थान के कुचामन सिटी में रहने वाले लोगों के लिए ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स खरीदने में मदद मिलेगी।
छात्र का कहना है कि मैंने पहले यह सोचकर दो लाख रुपये जुटाने का लक्ष्य रखा कि यह आसान नहीं होगा, लेकिन मेरे पिता ने मुझे पांच लाख तक का लक्ष्य रखने के लिए प्रेरित किया ताकि इससे अधिक लोगों की मदद की जा सके। वह आगे कहते हैं कि अप्रैल की शुरूआत में मेरा परिवार कोरोना वायरस की चपेट में आया। इसकी शुरूआत पहले मेरी मां से हुई, जिसके बाद मेरा भाई भी संक्रमित हुआ और फिर मैं और मेरे पापा भी पॉजिटिव आए।
छात्र ने कहा, खुशकिस्मती से इससे मेरा परिवार और मैं गंभीर रुप से प्रभावित नहीं हुआ। हालांकि इस पल ने मुझे एहसास कराया कि यह उन लोगों के लिए कितना कठिन होता होगा, जिनके पास पर्याप्त मदद नहीं है। छात्र ने आगे कहा, जब हम सभी नेगेटिव आ गए, तब मैंने अपने पिता को लोगों के लिए ऑक्सीजन सिलेंडर, प्लाज्मा, बेड और कई अन्य जरूरी चीजों की व्यवस्था करने के लिए फोन पर बात करते हुए देखा। कुछ दिनों बाद मैंने न्यूज में पढ़ा कि कोरोना से संक्रमित 25 लोगों की एक दिन में मौत हो गई है। ऐसा कोरोना के चलते नहीं, बल्कि ऑक्सीजन की कमी के चलते हुआ था। मैं हैरान था।
इस घटना ने मुझे अपने लोगों के लिए कुछ करने के लिए प्रेरित किया और मैंने उन लोगों के लिए धन संचय करने का फैसला लिया, जिन्हें ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स और ऑक्सीमीटर्स की जरूरत है। यद्यपि दिल्ली और अन्य महानगरों को पहले से ही कई चीजों की आपूर्ति कराई जा रही थीं और वहां चिकित्सकीय सुविधाएं भी अच्छी थीं, लेकिन मैंने महसूस किया कि छोटे शहरों में स्थिति बहुत खराब है।
मेरे पिता ने मुझे मेरे होमटाउन के बारे में बताया, जहां मेरे दादा-दादी रहते हैं। पिताजी ने कहा कि यहां मामलों की संख्या निरंतर बढ़ रही है और सपोर्ट बेहद कम है। दिल्ली की तरह यहां ऑक्सीजन सिलेंडर रिफिलिंग की सुविधा नहीं थी और इलाके में सिर्फ एक सरकारी अस्पताल था। ऑक्सीजन के लिए किसी भी मरीज के लिए अस्पताल में भर्ती होना ही एकमात्र विकल्प था क्योंकि कस्बे में ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स की उपलब्धता बहुत कम थी। फिर मैंने अपने गृहनगर – कुचामन सिटी के लिए फंड जुटाना शुरू किया।
धन जुटाने की प्रक्रिया को शुरू करते वक्त मैंने इस पहल के लिए लिंक को अपने परिवार, दोस्तों, टीचरों में साझा किया। मैंने कई सोशल मीडिया प्लेटफॉर्मों में भी इसे शेयर किया और सभी से अपील की कि इस लिंक को अपने करीबियों में साझा करें। शुरू में हमें अधिक डोनेशन नहीं मिल रहा था इसलिए मुझे चिंता थी कि मैं अपने लक्ष्य तक पहुंच पाउंगा भी या नहीं। हालांकि इस दौरान मुझे मेरे परिवार का साथ मिला, जिन्होंने मुझे और भी अधिक लोगों तक इसकी खबर पहुंचाने की बात कही। फंडराइजर को लेकर मेरे ट्वीट को कई अन्य अकाउंट्स द्वारा रीट्वीट किया गया।
फंडराइजर को शुरू किए जाने के दो दिन बाद डोनेशन आने में तेजी आई। मैंने अपने परिवार के सदस्यों और दोस्तों को कॉल कर रिक्वेस्ट किया कि वे कुछ न कुछ डोनेट जरूर करें। मेरे अपनों ने इस बात को अपने लोगों तक पहुंचाया। एक हफ्ते से कम समय के भीतर मैंने अपने लक्ष्य से अधिक यानि कि 5,00,000 रुपये हासिल कर लिया। इस काम में मुझे 153 लोगों का साथ मिला। हमने ऑक्सीमीटर और फेस मास्क जैसी कई अन्य जरूरी चीजों के साथ पांच ऑक्सीजन कॉन्सेंट्रेटर्स कुचामन को उपलब्ध कराया है। चार और कॉन्सेंट्रेटर्स के ऑर्डर दिए गए हैं, जो अगले हफ्ते तक हमें मिल जाएगी।
मुझे बेहद खुशी हो रही है कि 150 से अधिक मददगारों के समर्थन से हम कुछ लोगों की जान बचा पाएंगे। सभी डोनर्स को शुक्रिया, जिनमें से कई ने अपनी पहचान जाहिर नहीं की है। मुझे प्रेरित करते रहने के लिए भी लोगों का आभार। मुझे इस महामारी के दौरान अपने गृहनगर का समर्थन करने पर गर्व है। मैं अपने माता-पिता का भी शुक्रगुजार हूं, जिन्होंने इस सफर के हर कदम पर मेरा साथ दिया। मेरी दुआ है कि यह महामारी जल्द से जल्द खत्म हो जाए और हम सभी की जिंदगी पटरी पर आ जाए।