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वसुंधरा की नाराजगी का किनार कर बीजेपी ने बेनीवाल मिलाया हाथ

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जयपुर : भारतीय जनता पार्टी ने गुरुवार को राजस्थान में तेज तर्रार जाट नेता हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी से चुनावी गठजोड़ कर लिया। राष्ट्रीय राजनीति में पैठ बनाने की कोशिश कर रहे बेनीवाल के लिए यह गठजोड़ महत्वपूर्ण है। राजनीतिक जानकारों के अनुसार भाजपा के केंद्रीय नेतृत्व ने इसके जरिए राजस्थान में अपनी कद्दावर नेता पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को ‘राजनीतिक झटका’ दिया है। बीते कुछ दशकों में पहली बार ऐसा हुआ है कि भाजपा राज्य में ऐसे चेहरे से हाथ मिला रही है जो कल तक न केवल राजे का विरोधी रहा बल्कि उनके खिलाफ जांच बिठाने की मांग करता रहा हो। बेनीवाल से जब पूछा गया कि अब क्या बदल गया, तो उन्होंने कहा,’‘ यह तो दिल्ली संसद का मामला है इसलिए भाजपा से गठजोड़ किया है।

प्रकाश जावड़ेकर व अन्य लोगों से बात चल रही थी जो सिरे चढ़ गयी।’’ तब क्या भाजपा ने इस मामले मे राजे को दरकिनार किया है? इस पर भाजपा के एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने कहा, ‘‘ऐसा कहना गलत होगा। पार्टी चुनाव जीतना चाहती है और कई सीटों पर जाट मतदाता परिणामों को प्रभावित करते हैं इसलिए इसे सकारात्मक नजरिए से देखा जाना चाहिए।’’ भाजपा के एक अन्य नेता के अनुसार, ‘‘जो लोग वसुंधरा और उनकी राजनीति को जानते हैं वह समझ चुके हैं कि यह उनके लिए न केवल एक झटका है बल्कि संकेत भी है।’’

उन्होंने कहा कि पार्टी ने विधानसभा चुनाव में वसुंधरा राजे की ही मानी लेकिन संभवत: परिणाम उसके पक्ष में नहीं रहे इसलिए अब वह कोई जोखिम नहीं उठाना चाहती। उल्लेखनीय है कि भाजपा 2014 में राज्य की सभी 25 सीटों पर जीती थी। विधानसभा चुनाव में हार के बाद भाजपा ने राजे को राष्ट्रीय उपाध्यक्ष बना दिया। गुरुवार को जब भाजपा ने आरएलपी से हाथ मिलाया तो राजे जयपुर में होने के बावजूद वहां नहीं थी।

बेनीवाल ने इस अवसर पर किसी सवाल का जवाब दिए बिना इतना कहा कि वह राष्ट्रहित में, नरेंद्र मोदी को फिर से प्रधानमंत्री बनाने के लिए भाजपा के साथ आए हैं। जावड़ेकर ने कहा कि राजे से बात की गयी थी। इस गठजोड़ से नागौर के मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री सी आर चौधरी की टिकट कट गयी है। चौधरी को राजे का करीबी माना जाता है। भाजपा राज्य से बाकी चार केंद्रीय मंत्रियों को पहले ही टिकट दे चुकी है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि बेनीवाल के राजनीतिक करियर के उभार में ‘वसुंधरा विरोध’ बड़ी भूमिका निभाई है। वह 2008 में भाजपा की टिकट से विधायक बने लेकिन राजे व उनके करीबी माने जाने वाले मंत्री युनुस खान के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

पार्टी से निकाल दिए गए। अगला चुनाव निर्दलीय के रूप में जीते। दिसंबर में विधानसभा चुनाव से ठीक पहले बेनीवाल ने राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (आरएलपी) बनाई। उनका कहना है कि आरएलपी को 2.8 प्रतिशत वोट मिले जो नागौर के साथ साथ राज्य की बाड़मेर, सीकर, जोधपुर व पाली जैसी लोकसभा सीटों पर काफी महत्वपूर्ण है। विश्लेषकों के अनुसार भाजपा के लिए यही आंकड़ा पक्ष में है इसलिए उसने राजे बेनीवाल की व्यक्तिगत रंजिश को दरकिनार कर आरएलपी से हाथ मिला लिया।

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