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नेता प्रतिपक्ष चुनने की जल्दी में नहीं बीजेपी, राजे पर रहेगी निगाह

सत्ता में लौटी कांग्रेस की राज्य की महत्वपूर्ण 25 सीटों पर निगाह है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सारी सीटें बीजेपी के खाते में गयीं थीं।

राजस्थान में सत्ता से विपक्ष में आई भारतीय जनता पार्टी विधायक दल का नेता चुनने को लेकर जल्दबाजी में नहीं है। गहलोत सरकार के मंत्रिमंडल के गठन का काम पूरा होने के बाद पार्टी सप्ताह भर में यह औपचारिकता पूरी कर सकती है। प्रदेश बीजेपी में सबसे ज्यादा दिलचस्पी निर्वतमान मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे की भूमिका को लेकर है। वसुंधरा बुधवार को दिल्ली में थीं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष मदन लाल सैनी ने विधायक दल नेता के चुनाव के बारे पूछे जाने पर कहा, ‘‘जल्द ही फैसला करेंगे। वसुंधरा जी से बात करेंगे।’’

पार्टी के एक प्रवक्ता ने मंगलवार को कहा कि एक दो दिन में तो कुछ तय नहीं है लेकिन जल्द ही बैठक बुलाए जाने की पूरी संभावना है। उन्होंने कहा कि अभी तो कांग्रेस सरकार के मंत्रियों का मामला ही जयपुर दिल्ली के बीच फंसा था। सत्ता पक्ष को जल्दबाजी होती है, अब हम भी तय कर लेंगे और विधायकों की बैठक होगी। राज्य में नई विधानसभा के लिए हुए चुनावों के परिणाम 11 दिसंबर को आए थे।

प्रदेश में लेकिन नेता प्रतिपक्ष कौन होगा? इस पर पार्टी के नेता कुछ बोलने को तैयार नहीं हैं। एक पदाधिकारी ने कहा,‘‘यह फैसला तो विधायक करेंगे। उनकी बैठक में ही तय होगा।’’ प्रदेश बीजेपी के नेताओं का मानना था कि, पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व राज्य में वसुंधरा का विकल्प या उत्तराधिकारी बीते पांच साल में तैयार नहीं कर पाया है।

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एक वरिष्ठ पदाधिकारी ने नाम न दिए जाने की शर्त पर कहा, ‘‘कभी (गजेंद्र सिंह) शेखावत का नाम उछाला गया तो कभी (अर्जुनराम) मेघवाल को आगे किया गया। फिर राज्यवर्धन राठौड़ को संभावित विकल्प के तौर पर पेश करने की कोशिश हुई, लेकिन पार्टी पर राजे की पकड़ कमजोर नहीं पड़ी है।’’

हालिया विधानसभा चुनाव में बीजेपी का प्रदर्शन बहुत अच्छा नहीं रहा। कुछ महीने पहले तक राज्य में 180 सीट का लक्ष्य लेकर चल रही पार्टी अंतत: 73 सीटों पर ही जीत पाई और सत्ता से बेदखल हो गयी। भले ही कांग्रेस की तुलना में उसे मिले मतों का अंतर ज्यादा नहीं हो लेकिन सीटों का अंतर 26 का रहा और कांग्रेस ने सरकार बना ली।

इसके पहले 2008 में हुए चुनावों के बाद जब वसुंधरा राजे की अगुवाई वाली सरकार सत्ता से बेदखल हुई तो वह नेता प्रतिपक्ष बनीं। तब उनके विरोधियों का आरोप था कि प्रदेश अध्यक्ष के तौर पर पूरे कार्यकाल के दौरान वह लगभग विदेश में रहीं। यह अलग बात है कि पांच साल बाद 2013 में बीजेपी ने रिकार्ड 163 सीटों के साथ सत्ता में वापसी की।

लेकिन, पार्टी के नेता मानते हैं कि इस बार हालात अलग हैं। कुछ महीने बाद ही लोकसभा के चुनाव होने हैं। सत्ता में लौटी कांग्रेस की राज्य की महत्वपूर्ण 25 सीटों पर निगाह है। 2014 के लोकसभा चुनाव में राज्य की सारी सीटें बीजेपी के खाते में गयीं थीं। वहीं वरिष्ठ पत्रकार नारायण बारेठ मानते हैं कि वसुंधरा राजस्थान में नेता प्रतिपक्ष की भूमिका में रहेंगी।

उन्होंने कहा, ‘‘बीजेपी का विधायक दल में संख्या बल निसंदेह रूप से उनके पक्ष में है।’’ मुख्यमंत्री के तौर पर वसुंधरा राजे की पार्टी के मौजूदा केंद्रीय नेतृत्व से खींचतान सार्वजनिक रही है। चाहे वह पार्टी के नये प्रदेशाध्यक्ष का मसला हो या टिकटों के बंटवारे का, वसुंधरा कहीं न कहीं केंद्रीय नेतृत्व पर हावी रहीं। बारेठ कहते हैं, ‘‘मुझे नहीं लगता कि लोकसभा चुनावों से पहले बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व किसी तरह के उलट फेर की हिम्मत करेगा।’’

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