स्वदेशी तकनीक से तैयार हल्का लड़ाकू हेलीकॉप्टर (Light Combat Helicopter) भारतीय वायुसेना (IAF) में शामिल हो गया है। सीडीएस जनरल अनिल चौहान और वायुसेना प्रमुख एयर चीफ मार्शल वीआर चौधरी की उपस्थिति में इसको ‘प्रचंड’ नाम दिया गया है। हेलीकॉप्टर का यह बेड़ा भारतीय फोर्स की ताकत को न सिर्फ बढ़ाएगा, बल्कि दुश्मन देशों के पसीने भी छुड़ा देगा। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह ने जोधपुर एयरबेस पर लाइट कॉम्बैट हेलीकॉप्टर (LCH) में उड़ान भरी।
उड़ान के बाद रक्षा मंत्री ने कहा कि यह स्वदेश निर्मित हल्के लड़ाकू हेलीकाप्टर (LCH) में एक सहज और आरामदायक उड़ान थी। यह किसी भी इलाके, मौसम और ऊंचाई में उड़ सकता है; इसमें हमला करने की क्षमता है। हमारा आदर्श वाक्य है – “मेक इन इंडिया, मेक फॉर द वर्ल्ड।”
HCL से वायुसेना की कुशलता में होगी बढ़ोतरी
‘प्रचंड’ को वायु सेना को सौंपते हुए रक्षा मंत्री ने कहा कि भारतीय वायुसेना ने देश की सुरक्षा में अहम भूमिका निभाई है। चाहे आंतरिक खतरे हों या बाहरी युद्ध, IAF ने हमेशा अपने साहस और बहादुरी से राष्ट्रीय सुरक्षा को मजबूत किया है। स्वदेश में विकसित एलसीएच के शामिल होने से वायुसेना की कुशलता बढ़ेगी।
उन्होंने कहा कि स्वदेशी रूप से विकसित हल्के लड़ाकू हेलीकॉप्टर (LCH) को शामिल करने से हमारी क्षमता में वृद्धि होगी और रक्षा उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। LCH को शामिल करने के लिए नवरात्रि और योद्धाओं की भूमि राजस्थान से बेहतर समय नहीं हो सकता था।
रक्षा मंत्री ने कहा, लंबे समय से हमलावर हेलीकॉप्टरों की जरूरत थी और 1999 के कारगिल युद्ध के दौरान इसकी जरूरत को गंभीरता से महसूस किया गया था। LCH दो दशकों के अनुसंधान एवं विकास का परिणाम है। और IAF में इसका शामिल होना रक्षा उत्पादन में एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है।
उन्होंने कहा कि एलसीएच दुश्मन को चकमा देने, कई तरह के गोला-बारूद ले जाने और उसे तुरंत साइट पर पहुंचाने में सक्षम है। एलसीएच विभिन्न इलाकों में हमारे सशस्त्र बलों की जरूरतों को पूरी तरह से पूरा करता है और यह हमारी सेना और वायु सेना दोनों के लिए एक आदर्श मंच है।
राजनाथ ने कहा,राष्ट्र की रक्षा हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है, और हम इसके लिए पूरी तरह से प्रतिबद्ध हैं। मैं पूरे विश्वास के साथ कह सकता हूं कि आने वाले समय में जब भी दुनिया में सैन्य शक्ति समेत महाशक्तियों की बात होगी, भारत सबसे पहले होगा।
उन्होंने कहा कि हाल के यूक्रेनी संघर्ष या पहले के संघर्ष हमें सिखाते हैं कि भारी हथियार प्रणाली और प्लेटफॉर्म, जो युद्ध के मैदान में तेजी से आगे बढ़ने में असमर्थ हैं, उनकी क्षमता कम है, और दुश्मन के लिए आसान लक्ष्य बन जाते हैं।