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इमाम जैदीक का सवाल- अगर सचिन पायलट इतने जरूरी हैं, तो गहलोत क्यों नहीं सुन रहे उनकी बात

कांग्रेस ने सचिन पायलट को पार्टी के लिए मूल्यवान करार दिया है। वहीं पायलट द्वारा अपने विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ विद्रोह करने और प्रियंका गांधी के हस्तक्षेप के बाद लौटने के लगभग एक साल बाद भी अभी तक कोई मुद्दा हल नहीं हुआ है।

कांग्रेस ने सचिन पायलट को पार्टी के लिए मूल्यवान करार दिया है। वहीं पायलट द्वारा अपने विधायकों के साथ मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के खिलाफ विद्रोह करने और प्रियंका गांधी वाड्रा के हस्तक्षेप के बाद लौटने के लगभग एक साल बाद भी अभी तक कोई मुद्दा हल नहीं हुआ है। इसके अलावा साथ ही उनके समर्थक मंत्रियों को बर्खास्त कर दिया गया है। पूर्व उपमुख्यमंत्री के समर्थक उनकी समस्याओं को सुनने के लिए पार्टी पर दबाव बना रहे हैं।
सूत्रों का कहना है कि कमलनाथ को इस मुद्दे को हल करने के लिए चुना गया है, क्योंकि वह पार्टी के एक वरिष्ठ नेता और मध्य प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। गहलोत सरकार का लगभग आधा कार्यकाल समाप्त होने के बाद, उन्हें राजस्थान के मुख्यमंत्री से मंत्रिपरिषद का विस्तार करने और बोडरें और निगमों में राजनीतिक नेताओं की नियुक्ति करने की उम्मीद है।
सचिन पायलट का महत्व राजस्थान के कांग्रेस महासचिव प्रभारी अजय माकन के बयान में निहित है, जिन्होंने शुक्रवार को कहा था, ” प्रियंका गांधीजी और मैंने सचिन पायलटजी से बात की है। क्योंकि वह पार्टी के वरिष्ठ नेता हैं और एसेट हैं। इसलिए यह असंभव है कि अगर वह नियुक्ति चाहते हैं तो उन्हें मना कर दिया जाएगा। केसी वेणुगोपाल ने भी उनसे बात की है।”
उन्होंने यह भी कहा कि वह बेहद मूल्यवान हिस्सा हैं और पार्टी नेतृत्व उनके संपर्क में है । उन्होंने इन अफवाहों को दूर किया कि कोई नेता पायलट के साथ नहीं था, क्योंकि वह दिल्ली में थे, और वह किसी से नहीं मिले। माकन ने स्पष्ट किया कि प्रियंका गांधी पिछले सप्ताह से दिल्ली से बाहर हैं। माकन ने पिछले हफ्ते कहा था, “कैबिनेट, बोर्ड और आयोगों में खाली पदों को जल्द ही भरा जाएगा और हम सभी से बातचीत कर रहे हैं।”
पायलट ने उनसे किए गए वादों का समाधान न होने का मुद्दा उठाया है। पायलट ने कहा, “अब 10 महीने हो गए हैं। मुझसे कहा गया था कि समिति द्वारा त्वरित कार्रवाई की जाएगी, लेकिन अब आधा कार्यकाल समाप्त हो गया है, और उन मुद्दों को हल नहीं किया गया है। यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि पार्टी के इतने सारे लोग हैं कार्यकतार्ओं ने हमें जनादेश दिलाने के लिए अपना सब कुछ दे दिया, उनकी कोई सुनवाई नहीं हो रही है।”
बहरहाल, मुद्दा कांग्रेस आलाकमान का नहीं बल्कि मुख्यमंत्री का है जो पायलट के करीबी नेताओं और विधायकों को जगह नहीं देना चाहते। सचिन पायलट खेमे द्वारा उनकी राजनीतिक और मंत्री नियुक्तियों की मांगों को पूरा करने की मांग के बाद राज्य की सियासत में ट्विस्ट आ गया है। लगभग दो साल पहले कांग्रेस में शामिल हुए बसपा विधायकों ने भी पिछले साल के विद्रोह के बाद राजस्थान सरकार को बचाने के लिए अपने उचित इनाम की मांग करते हुए कहा कि अगर वे वहां नहीं होते, तो अशोक गहलोत की सरकार पहली पुण्यतिथि मना रही होती। इन विधायकों ने गहलोत पर भरोसा जताया है।
लेकिन कांग्रेस के भीतर के सूत्रों का कहना है कि सोनिया गांधी राज्य में मुद्दों का समाधान चाहती हैं लेकिन गहलोत की कीमत पर नहीं चाहती हैं। वह मामूली और बढ़िया समायोजन चाहती हैं ताकि वह उचित समय पर हस्तक्षेप कर सकें।मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने राजनीतिक क्वारंटीन में जाने के बाद और उनके अगले एक या दो महीनों के लिए व्यक्तिगत रूप से कोई बैठक नहीं करने वाले फैसले के बाद अटकलों को गति मिल गई है। उनके डॉक्टरों द्वारा सुझाई गई कोविड सावधानियों को ध्यान में रखते हुए, उनके कार्यालय ने सोमवार को ये सारी घोषणा की।
मीडिया सेल के संदेश के अनुसार, “मुख्यमंत्री कोविड से संक्रमित होने के बाद, कोविड के बाद के नतीजों के मद्देनजर डॉक्टरों की सलाह पर किसी से व्यक्तिगत रूप से मिलने में असमर्थ रहे हैं। इससे राज्य में फिर से विस्तार में देरी हुई है और पायलट के धैर्य और उनके दो साथियों के भाजपा में शामिल होने के बाद, अब सवाल यह है कि पायलट की चुप्पी के पीछे क्या राज है? ये कांग्रेस के लिए नई सुनामी का संकेत तो नहीं है?

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