मारवाड़ी घोड़ों के निर्यात पर 20 साल से लगा प्रतिबंध अब खत्म हो गया है जिसके बाद 6 मारवाड़ी घोड़े बांग्लादेश भेजे गए हैं। इन सभी घोड़ों को बांग्लादेश पुलिस ने राष्ट्रपति की शाही बग्घी के लिए खरीदा है, जो विभिन्न महत्वपूर्ण समारोह में देश के राष्ट्रपति की बग्घी की शोभा बढ़ाएंगे। बता दें जोधपुर के पूर्व नरेश गज सिंह 20 साल से दुनिया में मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों के निर्यात की अनुमति के लिए कोशिश कर रहे थे, जो अब सफल हो गए हो गए हैं।
एक लाख से एक करोड़ के बीच हो सकती है मारवाड़ी घोड़ों की कीमत
जानकारी के मुताबिक, अब पूरा विश्व प्रसिद्ध मारवाड़ी नस्ल के घोड़ों का निर्यात कर सकता है। बांग्लादेश को निर्यात किए गए सभी 6 घोड़ों को उम्मेद भवन पैलेस के मारवाड़ स्टड फार्म से भेजा गया है। इनकी कीमत के बारे में कोई जानकारी नहीं हे, वैसे अनुमान है कि इनकी कीमत एक लाख से एक करोड़ के बीच हो सकती है।
पहली बार मिली है मारवाड़ी घोड़ों के निर्यात करने की अनुमति
ऑल इंडिया मारवाड़ी हॉर्स सोसाइटी और मारवाड़ी हॉर्स स्टड बुक रजिस्ट्रेशन सोसायटी ऑफ इंडिया के सचिव जगजीत सिंह नथावत ने बताया है कि 6 पंजीकृत मारवाड़ी घोड़े राज ज्ञानेश्वरी, राज ज्वाला, राज सुजाता, राज रतन, बालसमंद लेक पैलेस स्थित मारवाड़ स्टड के राज, उम्मेद भवन पैलेस शिव और राज मूमल को पहली बार देश के बाहर निर्यात करने की आधिकारिक अनुमति मिली है।
बांग्लादेश के राष्ट्रपति की शोभा बढ़ाएंगे मारवाड़ी घोड़े
उन्होंने आगे बताया कि इनका निर्यात कोलकाता की जेके ट्रेडिंग कंपनी के जरिए किया गया है। इन घोड़ों को बांग्लादेश पुलिस ने बांग्लादेश के राष्ट्रपति की शाही गाड़ी के लिए खरीदा है जो विभिन्न महत्वपूर्ण कार्यों में राष्ट्रपति की गाड़ी की शोभा बढ़ाएंगे।
पूर्व नरेश गज सिंह की मेहनत लाई रंग
सचिव नथावत ने बताया कि मारवाड़ी घोड़ों की नस्ल के लिए पूर्व नरेश गज सिंह लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि पहले निर्यात प्रतिबंधित था लेकिन वर्षों के प्रयास के बाद अब केस टू केस लाइसेंस के आधार पर मारवाड़ी घोड़ों के निर्यात की अनुमति दी जा सकेगी। इससे मारवाड़ी घोड़ा किसानों को निर्यात की सुविधा मिल गई है। केंद्र सरकार का पशुपालन विभाग इसके लिए एनओसी देता है और डीजीएफटी दस्तावेज के आधार पर लाइसेंस जारी करता है।
राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार ने 2006 में इस कार्य योजना को दी थी अनुमति
सचिव नथावत ने कहा कि मारवाड़ी घोड़ों के विकास और बढ़ोतरी को लिए प्रथम संगोष्ठी का आयोजन वर्ष 2002 में उम्मेद भवन पैलेस में किया गया था। इसमें एक्शन प्लान बनाया गया था। इसी आधार पर राष्ट्रीय अश्व अनुसंधान केंद्र हिसार ने 2006 में इस कार्य योजना को मंजूरी दी और मारवाड़ी घोड़ों के लक्षण वर्णन को मान्यता दी।
मारवाड़ी हॉर्स स्टड बुक रजिस्ट्रेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया का गठन
अखिल भारतीय मारवाड़ी हॉर्स सोसाइटी की स्थापना वर्ष 2003 में पूर्व राजा के संरक्षण में की गई थी और मारवाड़ी घोड़ों की सुरक्षा के लिए काम किया गया था और उसके बाद मारवाड़ी घोड़ों के पंजीकरण के लिए मारवाड़ी हॉर्स स्टड बुक रजिस्ट्रेशन सोसाइटी ऑफ इंडिया का गठन किया गया था। जिसका मुख्य संरक्षक पूर्व राजा गज सिंह है।
घोड़ों में लगाई जाती है चिप
इसके तहत मारवाड़ी नस्ल के पशुपालकों के घोड़ों के पंजीकरण का कार्य शुरू किया गया। आवेदन के बाद, नियमों के आधार पर घोड़ों की जांच की जाती है और पंजीकरण के लिए सिफारिश की जाती है। रजिस्ट्रेशन के बाद घोड़े को बनवाकर पासपोर्ट दिया जाता है। गोड़े के शरीर में एक चिप लगाई जाती है, जिससे उसकी पहचान होती है। सोसायटी को पंजीकृत घोड़े की खरीद-बिक्री की जानकारी भी दी गई है।
ये है मारवाड़ी घोड़े की पहचान
सोसायटी के रजिस्ट्रार डॉ. महेंद्र सिंह राठौड़ ने बताया कि मारवाड़ी घोड़े की पहचान आमतौर पर 60 से 64 इंच ऊंचे, 7 से 9 फीट लंबे, खूबसूरत लंबी चाल, बड़ी एक से डेढ़ इंच आंखें, चार से पांच इंच के रूप में की जाती है। कान और ऊपर। चपटा, लम्बा ललाट लगभग डेढ़ से ढाई फुट का होता है, मुख 6 इंच गोलाकार होता है, इसकी गर्दन का वक्र मोर के समान होता है। इसकी पूँछ तीन से साढ़े तीन फुट लंबी होती है जिसमें बाल और उर्ध्वाधर ट्यूब और उभरे हुए बाल होते हैं।