कृषि कानूनों को लेकर केंद्र सरकार लगातार विपक्ष के वार झेल रही है। मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार को किसान विरोधी बताते हुए केंद्र द्वारा लाए गए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग कर रही है।राजस्थान के पूर्व उपमुख्यमंत्री सचिन पायलट ने किसानों के मान-सम्मान को सर्वोपरि बताते हुए रविवार को कहा कि केंद्र सरकार को ‘‘जिद और जबरदस्ती से पारित कराये गए’’ अपने केंद्रीय कृषि कानूनों को तत्काल वापस लेना चाहिए।
पायलट ने 26 जनवरी को नई दिल्ली में ‘ट्रैक्टर परेड’ के दौरान हुई हिंसक घटनाओं की निष्पक्ष जांच कराने की भी मांग की है ताकि असली दोषियों का पता चल सके। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार किस दबाव में यह कानून लाई और किस मजबूरी में वह इन्हें वापस नहीं ले रही है, इसे लेकर बड़े सवाल उठने लगे हैं।
उन्होंने कहा, ‘‘पहले तो केंद्र सरकार ने अपनी जिद और जबरदस्ती से, लोकतांत्रिक परंपराओं को ताक पर रखकर ये कानून पारित कराये। जिन किसानों के कथित भले के लिए ये कानून लाए गए, वे खुद इसके विरोध में दो महीने से आक्रोशित और आंदोलनत हैं तो सरकार इन्हें वापस क्यों नहीं ले रही है। केन्द्र इन कानूनों को तुंरत वापस ले।’’
पायलट ने कहा, ‘‘मेरा मानना है कि लगभग दो महीनों से सड़कों पर बैठे देश के अन्नदाता, किसानों का मान-सम्मान सर्वोपरि है और अगर वे खुद मानते हैं कि ये कानून उसके हित में नहीं हैं तो इन्हें वापस लेना उचित मांग है और सरकार को अपनी जिद तथा अडियल रवैया छोड़कर इन कानूनों को वापस लेना चाहिए।’’
उन्होंने कहा कि इतने बड़े आंदोलन के बावजूद सरकार द्वारा इन कानूनों को वापस नहीं लिया जाना उसकी मंशा पर सवालिया निशान खड़ा करता है। उन्होंने कहा, ‘‘पहली बात तो किसी किसान ने ये कानून बनाने की मांग नहीं की थी। केंद्र सरकार ने किसी किसान संगठन या राज्य सरकार से चर्चा और सलाह किए बिना कानून बना दिए और अब इन कानूनों को वापस नहीं लेने पर अड़ी है।’’
पायलट ने कहा, ‘‘चूंकि आपने कानून बना दिए लेकिन जब अब इतना बड़ा विरोध हो रहा है तो केंद्र सरकार को इन्हें वापस लेने से कौन रोक रहा है। उसकी क्या मजबूरी या विवशता है कि केन्द्र सरकार इन्हें वापस नहीं ले पा रही है, सवाल यह उठता है।’’ उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि पहले किसी सरकार ने कोई कानून वापस नहीं लिया या आगे ऐसा नहीं होगा लेकिन इस मौजूदा केंद्र सरकार के रवैये से सवाल उठने लगे हैं।
पायलट ने 26 जनवरी को नयी दिल्ली में ट्रैक्टर परेड के दौरान हुई हिंसक घटनाओं की निष्पक्ष जांच कराने की मांग की। उन्होंने कहा, ‘‘गणतंत्र दिवस को जो घटनाक्रम सामने आया उसकी निष्पक्ष और गहराई से जांच होनी चाहिए। जो भी व्यक्ति कानून का उल्लंघन करता है या देश के मान-सम्मान को ठेस पहुंचाता है या तिरंगे का अपमान करता है, उसके खिलाफ निश्चित रूप से कानून के तहत कार्रवाई होनी चाहिए।’’
उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन जो आरोप किसान संगठन लगा रहे हैं कि यह सब साजिशपूर्ण तरीके से आंदोलन को बदनाम करने के लिए किया गया, उसकी भी निष्प्क्ष जांच होनी चाहिए।’’ आंदोलनरत किसानों के लिए ‘अलगाववादी और नक्सलवादी’ जैसे शब्दों का इस्तेमाल किए जाने की आलोचना करते हुए उन्होंने कहा, ‘‘हमारा तिरंगा हमारे देश, हमारे पुलिसकर्मी सैनिक सबके लिए सम्मानजनक है और उससे कोई समझौता नहीं हो सकता। लेकिन किसान हमारे अन्नदाता हैं, वे पूरे देश का पेट पालते हैं तो इन्हें अलगाववादी, नक्सलवादी कहना और उन के खिलाफ तरह-तरह के आरोप लगाना गलत है।’’
इस आंदोलन को लेकर केंद्र सरकार के रवैये की निंदा करते हुए पायलट ने कहा, ‘‘शुरू से ही उसका रवैया किसानों को बरगलाने वाला रहा है जबकि लोकतंत्र का मूल मंत्र यही है कि सबकी सुनो, संवाद करो तथा संयम एवं साझेदारी से सबको साथ लेकर चलो।’’ उन्होंने कहा कि किसानों के इस आंदोलन का देश के राजनीतिक और सामाजिक परिदृश्य पर लंबे समय तक असर होगा।