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भारत का ऐसा इकलौता मंदिर जहां भगवान शिव के अंगूठे की होती है पूजा, जानें इसके पीछे का रहस्य

माउंट आबू से 11 किलोमीटर की दूरी पर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का मंदिर है। इस मंदिर में शिवजी के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। 

माउंट आबू से 11 किलोमीटर की दूरी पर अचलगढ़ की पहाड़ियों पर शिवजी का मंदिर है। इस मंदिर में शिवजी के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा की जाती है। इसके पीछे का रहस्य क्या है चलिए जानते हैं-
अचलेश्वर मंदिर चमत्कारों से भरा है

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अचलगढ़ की पहाड़ियों के पास अचलेश्वर मंदिर है। इस मंदिर में भोलेनाथ के अंगूठे की पूजा की जाती है। ऐसी पहली जगह है जहां पर भगवान की प्रतिमा या शिवलिंग की पूजा के बजाय भोलेनाथ के दाहिने पैर के अंगूठे की पूजा होती है। 
मान्यता क्या है

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मान्यताओं के अनुसार, भगवान शिव के अंगूठे के कारण यहां के पर्वत टिके हुए हैं। यह पर्वत नष्ट हो जाता अगर शिव जी का अंगूठा ना होता। कई चमत्कार भोलेनाथ के अंगूठे को लेकर बताए जाते हैं। 
कभी नहीं भरता अंगूठे के नीचे गड्ढे में पानी

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बता दें कि भोलेनाथ के अंगूठे के नीचे एक गड्ढा है। इस गड्ढे को लेकर ऐसा माना जाता है कि कभी भी यह गड्ढा भरता नहीं है चाहे इसमें कितना भी पारी भरता रहे। इतना ही नहीं जो जल शिवजी पर चढ़ाया जाता है वह भी कभी नजर नहीं आता। आज तक किसी को नहीं पता चला कि यहां का पानी कहां चला जाता है। 
पर्वत को हिलने से रोक दिया जब शिव जी ने

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पौराणिक कथाओं में कहा गया है कि जब अर्बुद पर्वत पर स्थित नंदीवर्धन जब हिलने लग गया। भगवान शिव हिमालय पर तपस्या कर रहे थे और इससे उनके तपस्या भंग हो गई। भगवान शिव की नंदी भी इस पर्वत पर थी। भगवान शिव जी  ने अपने अंगूठे से अर्बुद पर्वत तक हिमालय को पहुंचाया ताकि नंदी बच जाए। पर्वत को हिलने से रोका जिससे वह स्थिर रहा। इसी वजह से इस पर्वत को भगवान शिवजी ने अपने अंगूठे से उठाया हुआ है।
प्रतीक है चंपा का विशाल पेड़ प्राचीनता का

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चंपा का बहुत बड़ा पेड़ भी इस मंदिर में स्थित है। इस मंदिर की प्राचीनता को इस पेड़ को देखकर जाना जाता है। दो कलात्मक खंभों का धर्मकांटा मंदिर में बाई ओर बना हुआ है जिसकी शिल्पकला बहुत ही खूबसूरत और अद्भुद है। 

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