छठ पूजा का पर्व कल 31 अक्टूबर से शुर हो रहा है। हर साल की तरह इस साल भी लोग छठ पूजा का यह महापर्व जोर-शोर से मनाएंगे। छठ माता की पूजा महिलाएं निर्जला व्रत रखकर इस दिन पूरे विधि विधान से करती है साथ ही अर्घ्य सूर्यदेव को देती हैं। संतान प्राप्ति, संतान की सुख समृद्धि और लंबी आयु के लिए छठ पूजा का व्रत महिलाएं रखती हैं। बिहार,झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल में छठ पूजा का महापर्व मनाया जाता हैं।
छठ पूजा का व्रत बहुत ही मुश्किल होता है और महाव्रत इसलिए कहा जाता है। छठ पूजा का पर्व कार्तिक शुक्ल पक्ष की खष्ठी को मनाते हैं। शास्त्रों में कहा गया है कि सूर्य भगवान की बहन छठ माता है। इसी वजह से सूर्य का अर्घ्य छठ मैय्या की पूजा के बाद देते हैं। मान्यता है कि छठ मैय्या की पूजा करने से संतान की प्राप्ति होती है। चलिए छठ पूजा के शुरु होने का महत्व और नहाय खाय के बारे में बताते हैं।
ये है नहाय खाय का महत्व
नहाय खाय का छठ पूजा में अहम महत्व होता है। नहाय खाय कार्तिक शुक्ल की चतुर्थी को मनाया जाता है। नदी में महिलाएं इस दिन स्नान करती हैं और नए वस्त्र पहनती हैं। इस दिन साधारण भोजन ही महिलाएं खाती हैं। घर के बाकी सारे सदस्य महिलाओं के बाद भोजन ग्रहण करते हैं।
ये है खाने का महत्व
कार्तिक शुुक्ल की पंचमी को यह व्रत रखते हैं। छठ पूजा के दूसरे दिन यह व्रत रखा जाता है। प्रसाद बनाने के लिए इस दिन गेहूं को महिलाएं पिसती हैं। जो महिलाएं छठ पूजा का व्रत खरना के दिन रखती हैं वह इस दिन गुड़ की खीर का सेवन करती हैं। गुड़ की खीर बहुत ही शुभ मानते हैं। इसके साथ ही छठ परमेश्वरी की पूजा भी गुड़ की खीर से करते हैं और उसे प्रसाद के रूप में खाते हैं। बता दें कि नमक और चीनी खरना के दिन ग्रहण नहीं करते हैं।
प्रसाद तैयार होता है खष्ठी के दिन
ठेकुआ और मीठी पूरी के प्रसाद खष्ठी के दिन बनाते हैं। प्रसाद और फल की टोकरी को इसी दिन सजाया जाता है। महिलाओं की बांस की टोकरी में पूजा की सारी सामग्री को सूरज ढलने के बाद सूर्य देवता काे चढ़ा देती हैं। साथ ही महिलाएं ढलते सूर्य को अर्घ्य देने के बाद वापस घर लौट जाती हैं। बता दें कि छठ माता का गीत महिलाएं खष्ठी की रात को गाती हैं और कीर्तन भी करती हैं।
अर्घ्य दिया जाता है सप्तमी के उगते हुए सूर्य को
छठ पूजा के अंतिम दिन में छठ मैय्या की पूजा करने के बाद अर्घ्य उगते हुए सूरज को देकर पूजा का समापन करते हैं। महिलाएं भोर में तीन या चार बजे छठ पूजा के आखिरी दिन पर उठती हैं और पूजा की सारी तैयारियां करती हैं। महिलाएं नदी या तालाब में पानी के बीच में छठ पूता के अंतिम दिन में खड़ी होती हैं। महिलाएं सूर्य की लालिमा देखने के बाद सूरज को अर्घ्य देती हैं और संतान प्राप्ति, सुख समृद्धि की मनोकामना करती हैं साथ ही अपना व्रत भी प्रसाद ग्रहण करके खोल देती हैं।