युद्ध भूमि के समय जिस तरह से हमारे देश में राजा महाराजा मैदान पर लड़ाई करने के लिए उतरते थे उस समय अपने सैनिकों के प्रति जैसी भूमिका एक राजा के होती थी वैसी ही भूमिका राज के रक्षक बने घोड़े की होती थी। घोड़े अपने मालिक की रक्षा पूरी जबाबदारी से करते हुए वीर गति को प्राप्त हो जाते थे।
यही वजह है कि राजा-महाराजाओं की आज भी जब प्रतिमा बनती है तो उनके साथ घोड़ों को भी बनाया जाता है ताकि हमेशा अपने राजा के साथ उसे भी याद किया जाए। घोड़े की मूर्ति प्रतिमाओं के साथ खड़ी हुई उनके रक्षक और वीरता का संदेश पहुंचाती हैं।
यही वजह है कि वीर महापुरुषों के साथ उनके घोड़े भी अमर हो जाते हैं और हमेशा घोड़ों को इनके नाम के साथ याद किया जाता है। घोड़े के साथ बनी हुई मूर्ति अलग-अलग महापुरुषों की होती है। लेकिन इनके पैर की तरफ एक अलग ही संदेश घोड़ों की यह मूर्तियां हमें देती हैं। आज हम आपको घोड़े की अलग-अलग तरह से बनी हुई मूर्तियों के पीछे का संदेश बताने जा रहे हैं।
घोड़ा खड़ा दो पैरों पर
अगर किसी भी वीर प्रतिमा के साथ खड़े घोड़े के दो पैर अगर ऊपर की तरफ होते हैं तो वह यह संदेश देते हैं कि इस वीर पुरुष या वीरांगना से अपने जीवन में कई युद्ध लड़े हैं और युद्ध लड़ते-लड़ते वह मर गए। इससे यह वीर पुरुष लड़ते-लड़ते युद्ध में शहीद हो गए।
घोड़े का एक पैर उठा हुआ
अगर किसी भी वीर पुरुष के घोड़े का एक पैर उठा हुआ होता है तो वह यह संदेश देता है कि युद्ध में योद्धा बहुत जख्मी हो गया था और इलाज के दौरान उसकी मौत हो गई या फिर युद्ध में मिले जख्म की वजह से उसकी मौत भी यह कारण हो सकती है।
घोड़ा खड़ा सामान्य रूप से
कई प्रतिमाओं में आपने ऐसे घोड़े देखे होंगे जो अपने चारों पैरों पर खड़े होते हैं। चारों पैरों पर खड़े हुआ घोड़ा यह संकेत देता है कि उस वीर पुरुष ने अपने जीवन में कई युद्ध लड़े हैं लेकिन उनकी मृत्यु सामान्य रूप से हुई है। उस योद्ध की मौत ना तो किसी जंग या युद्ध के दौरान किसी जख्म की वजह से नहीं हुई है। इस वीर योद्धा की मौत सामान्य रूप से हुई है।