सोचिए कि आज आपका एग्जाम हो और आप एग्जाम देने के लिए सुबह से उठकर तैयार हो चुके हो आपके एग्जाम का समय दोपहर 2:00 बजे से शुरू होता है आप अपने घर से 12:00 ही पूरा सामान लेकर निकल जाते हैं। आप अपने पेपर के लिए अच्छे से तैयारी करके जाते हैं और जब आप अपने एग्जाम सेंटर पहुंचते हैं तब आपको पता चलता है कि पेपर आज के 2 बजे नहीं कल के 2 बजे से शुरू होगा। तब आपको कैसा एहसास होगा। दरअसल आप जिस घड़ी में समय देखने के लिए यूज करते हैं। सब बात की जड़ वहीं घडी का हैं।
अपने देश के साथ-साथ दुनिया के ज्यादातर देशों में घड़ी का 12 घंटे वाला रूप ही सिस्टम इस्तेमाल में लाया जाता है ऐसे मैं आपने कभी ना कभी तो यह जरूर सोचा होगा कि, दिन में 24 घंटे होते हैं तो घड़ी में फिर यह संख्या 12 घंटों की क्यों रहती है? दरअसल पूरे घड़ी के अंदर 24 घंटे को लिखना काफी ज्यादा मुश्किल और कठिनाई भरा साबित हो सकता है
दिन के 12 या रात के 12 लोग इसके बीच में भी कंफ्यूजन हो सकते थे। लेकिन आपने देखा होगा कि ट्रेन में और एयरपोर्ट पर आपको ऐसी घड़ियां दिख जाएंगे जिसमें 1 से लेकर 24 तक की काउंटिंग का इस्तेमाल किया जाता है मगर दीवार पर लगने वाली जो हमारे घर में आम घड़ी होती है उसमें ऐसा नहीं होता है।
इन सभ्यताओं ने दिन को 2 साइकिल में बांट दिया था। दिन की साइकिल, जिसे सूर्य की चाल से मापा जाता था और रात की साइकिल जिसे चंद्रमा की चाल से मापा जाता था. यही कारण है कि आगे चलकर लोगों ने AM और PM के कंसेप्ट को बनाया था। मिस्त्र के लोग अपने सन डायल और वॉटर डायल में क्लॉक फेस 12 घंटे का रखते थे। वॉटर डायल पानी का इस्तेमाल कर के बनाई जाने वाली खास घड़ियां थीं
जिससे सूर्यास्त के बाद का वक्त मापा जाता था। प्राचीन लोगों ने पाया कि एक साल में 12 लूनर साइकिल होते हैं। इसके अलावा उस वक्त के लोग काउंटिंग के लिए 12 काउंटिंग सिस्टम का प्रयोग करते थे, पर आज 10 का प्रयोग किया जाता है। इसका कारण ये है कि हमारी 10 उंगलियां हैं, तो काउंट करने में आसानी होती है।