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द्रौपदी मुर्मू का संघर्ष: काँटों से भरी रही जिंदगी, परिवार में एक के बाद एक मौत, लेकिन नहीं मानी हार

हम अपनी परेशानियों से इतनी जल्दी हार मान लेते हैं की हम आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं। लेकिन आज हम आपको आज एक ऐसी महिला की संघर्षो से भरी कहानी बताने वाले हैं, जिसके जीवन में एक के बाद एक परेशानिया आती गई। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी आज वो देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गई हैं

हम अपनी परेशानियों से इतनी जल्दी हार मान लेते हैं की हम आगे बढ़ ही नहीं पाते हैं। लेकिन आज हम आपको आज एक ऐसी महिला की संघर्षो से भरी कहानी बताने वाले हैं, जिसके जीवन में एक के बाद एक परेशानिया आती गई। लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी आज वो देश की पहली महिला आदिवासी राष्ट्रपति बन गई हैं। जी हाँ हम बात कर रहे द्रौपदी मुर्मू की, जो एनडीए की तरफ से राष्ट्रपति उम्मीदवार थी, उन्होंने विपक्ष के उम्मीदवार यशवंत सिन्हा को हराकर देश के सर्वोच्च पद पर आसीन हुई। मुर्मू को 540 सांसदों सहित कुल 2824 मतदाताओं के वोट मिले जबकि उनके प्रतिद्वंद्वी सिन्हा को 208 सांसदों सहित 1,877 मतदाताओं के वोट मिले।  
 द्रौपदी का जीवन काँटों भरा था। पहले उन्होंने अपने दो जवान बेटों को खो दिया. फिर पति का भी साथ छूट गया। लेकिन उन्होंने सभी बाधाओं को दूर करके नयी जिंदगी की शुरुआत की। मुर्मू एक बेहद गरीब परिवार में जन्मी थी। पढ़ाई लिखाई के ज्यादा साधन नहीं थे। फिर भी उन्होंने अपने सपनों की उड़ान भरी। 
द्रौपदी मुर्मू का जन्म ओडिशा के मयूरभंज जिले में 20 जून 1958 को हुआ था, वह एक आदिवासी परिवार में जन्मी थी। वही उनके पिता का नाम बिरंची नारायण टुडू था, जो अपनी परंपराओं के मुताबिक, गांव और समाज के मुखिया थे। द्रौपदी का गाँव काफी छोटा था, पढ़ाई के लिए अधिक साधन नहीं थे। फिर भी उन्होंने अपने गृह जनपद से शुरुआती शिक्षा पूरी करने के बाद भुवनेश्वर के रामादेवी महिला महाविद्यालय से स्नातक की डिग्री हासिल की। आपको जानकारी हैरानी होगी मुर्मू के क्लास में सिर्फ 6 लड़कियां और 30 लड़के थे, जिनकी मॉनिटर मुर्मू थी। 
बेटों के बाद पति की हो गई थी मौत 
बहरहाल, पढ़ाई के बाद मुर्मू की शादी श्याम चरण से हुई थी। जिनसे उनके तीन बच्चे थे। बाद में उनके दोनों बेटों का निधन हो गया. सबसे पहले मुर्मू के बड़े बेटे की साल २००9 में मौत हुई। फिर उनके छोटे की भी मौत हो गई और अंत में द्रौपदी मुर्मू के पति ये सदमा बर्दाश्त नहीं कर पाए और पंचतत्व में विलीन हो गए। बच्चों और पति का साथ छूटना द्रौपदी मुर्मू के लिए कठिन दौर था। 
द्रौपदी मुर्मू ने अपना घर चलाने के लिए एक क्लर्क और टीचर के रूप में भी काम करना शुरू किया। उनके ऊपर अपनी बेटी को संभालने की भी जिम्मेदारी थी।  लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और समाज के लिए कुछ करने के लिए राजनीति में कदम रखा। झारखंड की राज्यपाल से देश की राष्ट्रपति बनने तक का सफर द्रौपदी मुर्मू का प्रेरणाओं से भरा हुआ हैं। 

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