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गणेश जी को दूर्वा अर्पित करने की परंपरा ऐसे शुरू हुई थी, इसके पीछे की है ये पौराणिक कथा

हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना के लिए माना गया है। लाल गुड़हल के फूल और दूर्वा का विशेष महत्व गणपति बप्पा की पूजा में मानते हैं।

हिंदू धर्म में बुधवार का दिन भगवान गणेश जी की पूजा-अर्चना के लिए माना गया है। लाल गुड़हल के फूल और दूर्वा का विशेष महत्व गणपति बप्पा की पूजा में मानते हैं। मान्यता है कि यह दोनों चीजें भी बुधवार के दिन भक्त गणेश जी को पूजा में चढ़ाएं तो सभी मुरादें पूर्ण हो जाती हैं। वैसे तो एक पौराणिक कथा भी दूर्वा चढ़ाने के पीछे बताई गई है। 
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एक बात का विशेष रूप से ध्यान दूर्वा चढ़ाते समय करना होता है कभी भी गणपति के पैरों पर इसे नहीं रखना चाहिए। गणपति के हाथ या फिर सिर के ऊपर ही दूर्वा को रखा जाता है। आखिर क्या मान्यता है दूर्वा गणपति जी को चढ़ाने के पीछे उसकी पौराणिक कथा के माध्यम से बताते हैं। 
पौराणिक कारण ये है गणपति जी को दूर्वा चढ़ाने का
प्राचीन समय की एक बात है जब धरती के साथ स्वर्ग में भी असुर की वजह से त्राहि फैल गई थी। इस असुर के आतंक से धरती पर मानव और ऋषि-मुनि के साथ स्वर्ग में देवता भी कांप गए थे। बता दें अनलासुर उस समय आतंक मचा रहा था। वह सभी प्राणियों को जिंदा खा जाता था। देवताओं के पास मनुष्य इस दैत्य के अत्याचारों से डर कर पहुंचे थे। मगर देवताओं के लिए भी यह असुर खतरा बन रहा था। उसके बाद महादेव के समक्ष सभी देवता पहुंचे और सबने प्रार्थना की कि अनलासुर के इस आतंक को अब वहीं खत्म कर सकते हैं। 
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फिर सबकी प्रार्थना को महादेव ने सुना और देवताओं को कहा कि सिर्फ श्रीगणेश है जो असुर अनलासुर का नाश कर सकता है। उसके बाद गणपति बप्पा के पास देवता गए और अपनी व्यथा बताई जिसके बाद उन्हें आश्वासन गणपति जी ने दिया कि उस असुर के आतंक से वह सबको मुक्त करा देंगे। सबको उसके आतंक से बचाने के लिए गणेश जी ने अनलासुर को ही निगल लिया। गणपति जी के पेट में अत्यंत जलन अनलासुर को निगलने से शुरु हो गई। 
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गणेश जी को इस परेशानी से बचाने के लिए कई तरह के उपाय किए परंतु,उन्हें आराम नहीं मिल रहा था। उसके बाद गणेश जी को दूर्वा की 21 गांठें बनाकर कश्यप ऋषि ने खाने के लिए दीं। गणपति बप्पा के पेट में जलन दूर्वा को खाते ही शांत हो गई। उसके बाद से ही दूर्वा चढ़ाने की परंपरा गणेश जी को शुरु हो गई। 
ये है लाभ और जानकारी प्रभु पर दूर्वा अर्पित करने के
1. हमेशा विषम संख्या में जैसे 3,5,7 गणेश जी को दूर्वा की पत्तियां अर्पित करें। 
2. हमेशा जड़ के साथ दूर्वा को अच्छे से धो कर अर्पित करनी चाहिए। जिस तरह से समिधा एकत्र बांधते हैं वैसे ही दूर्वा को भी बांधे। दरअसल ऐसे बांधने से अधिक समय तक दूर्वा की सुगंध बनी रहती है। पानी में भिगोकर भी आप उसे चढ़ा सकते हैं। ऐसा करने से वह ज्यादा समय तक ताजा रहती है। 
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3. वन्‍स्पतियां भी दूर्वा के साथ गणपति बप्पा पर चढ़ाई जाती हैं। लेकिन तुलसी नहीं उन्हें चढ़ाते हैं। तुलसी पत्र से गणेश जी की पूजा और दूर्वा से दुर्गाजी की पूजा नहीं करते।
4. गुड़हल का लाल फूल गणपति बप्पा को बहुत पसंद है। मान्यता है कि हर कामना शीघ्र ही फूल चढ़ाने से पूरी हो जाती है। दूर्वा के साथ गणेजी को चांदनी,चमेली या पारिजात के फूलों की माला चढ़ाने से वह जल्द प्रसन्न होते हैं। 
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5. लाल वस्‍त्र से गणेश जी की पूजा की जाती है। दरअसल उनका वर्ण लाल है। लाल फूल व रक्तचंदन का इस्तेमाल उनकी पूजा में करें। 

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