आज कल की बदलती हुई लाइफस्टाइल और टेंशन ने दिल की बीमारियों का डर पहले से कहीं ज्यादा बढ़ा दिया है। पहले ऐसा माना जाता था कि जो लोग मोटापे का शिकार हैं और जो ज्यादा चिकनाई वाला खाना खाते हैं,ज्यादा शराब का सेवन करते हैं उन लोगों को दिल की बीमारी हो जाती है। लेकिन आजकल तो 30 साल के युवा भी दिल की बीमारियों का शिकार हो रहे हैं।
कार्डिएक अरेस्ट और हार्ट अटैक में अंतर
ऐसा कहा जाता है दिल की बीमारी में सामान्य रूप से मौत दो वजहों से होती है। पहली हार्ट अटैक और दूसरी कार्डिएक अरेस्ट। लेकिन कई सारे ऐसे लोग जो इन दोनों में फर्क नहीं समझ पाते हैं। क्योंकि कार्डिएक अरेस्ट और हार्ट अटैक दोनों में ही फर्क है। तो आइए आप भी जान लें इन दोनों चीजों में क्या फर्क होता है।
जब खून की सप्लाई हार्ट मसल्स में किसी वजह से डिस्टर्ब हो जाता है जो उसकी वजह है से दिल का दौड़ा पड़ता है। उस दौरान शरीर के दूसरे हिस्सों को दिल ब्लड सप्लाई कर देता है। जब दिल का दौरा पड़ता है तो शरीर में ब्लड पंप करना अचानक से बंद हो जाता है। उस दौरान शख्स बेहोश हो जाता है या तो फिर उसकी सांसे बंद हो जाती हैं।
इस स्थिति को मेडिकल शब्दों में इलेक्ट्रिक कंडक्टिंग सिस्टम का फेल होना कहते हैं। मरीज को अगर 10 मिनट के भीतर मेडिकल सुविधा मिल जाए तो उसकी जान बच सकती है। इस स्थिति में दिल और सांस रूक जाती हैं लेकिन दिमाग जिंदा रहता है। जिन शख्स को हार्ट अटैक पहले आया हो उसे दिल का दौरा पड़ने की संभावता ज्यादा हो जाती है।
कई कारण होते हैं दिल के रोग बढ़ने के
जिला एमएमजी अस्पताल के सीनियर डॉक्टर ने कहते हैं कि लोगों की जीवनशैली समय के साथ लोगों की पूरी तरह से बदल गई है। लोग रात को देर तक जागते हैं, सुबह देर तक सोते हैं, फिजिकल वर्क बिल्कुल नहीं करते और खाना-पीना उनका अनियमितता से होता है। इतना ही नहीं लोग तनाव में रहते हैं और नशीले पदार्थ लेते हैं जिसकी वजह से दिल के रोग बढ़ना ज्यादा हो जाता है।
इस पर सीनियर डॉक्टर ने बात करते हुए कहा कि एक दिन में उनके पास 100 से 150 मरीज आते हैं। इन मरीजों में 40 फीसदी 40 से कम आयु के आते हैं। इन लोगों को घबराहट, धड़कनों का असामन्य होना, हाई या लो बीपी जैसी समस्या होनी शुरु हो गई हैं। फिजिकल वर्क और अनियमित दिनचर्या और खान-पान की वजह से उनको यह बीमारी हो जाती है।
कार्डिएक अरेस्ट होता है अचानक
कार्डिएक अरेस्ट सामान्य रूप से अचानक होता है। दिल का दौरा पड़ने से पहले कोई भी चेतावनी बॉडी नहीं देती है। अगर 30 साल की उम्र के बाद ऐसिडिटी या अस्थमा की समस्या शुरु हो जाती है तो यह दिल के दौरे पड़ने के संकेत देता है।
नजरअंदाज ना करें इन संकेतों को
30 सेकंड से ज्यादा छाती में होने वाला दर्द, छाती के बीचोंबीच भारीपन, हल्की जकड़न या जलन, थकावट के समय जबड़े में होने वाला दर्द, सुबह छाती में होने वाली बेचैनी, थकावट के समय सांस का फूलना, छाती से बाईं बाजू और पीठ की ओर जाने वाले दर्द, बिना वजह आने वाले पसीना और थकावट
दिल की बीमारी हो सकती है किसी उम्र में
किसी भी उम्र में दिल की बीमारी हो सकती है। बता दें कि शरीर में कलेस्ट्रॉल या बॉडी मास के आधार पर किसी व्यक्ति को हार्ट अटैक की संभावना नहीं होती है। कई कारण होते हैं हार्ट अटैक आने के भी।
हाई लिपिड प्रोफाइल, विशेषकर हाई कलेस्ट्रॉल, दिल की बीमारी के खतरनाक कारणों में से एक है। इसके अलावा हार्ट अटैक की बीमारी हाइपटेंशन और डायबीटीज के रोगिरयों को हो सकती है।
दिल की बीमारी अलग होती है महिलाओं में
इस मामले में सीनियर डॉक्टर ने बात करते हुए कहा है कि महिलाओं की समस्या यूनीक होती है। उनमें पेट में गैस बनना, जबड़े में दर्द, चक्कर आना दिखता है। महिलाओं में मेनॉपॉज के बाद हार्ट अटैक का खतरा बन जाता है। महिलाओं के अंदर एस्ट्रोजेन नाम का हॉर्मोन पीरियड्स के दौरान बनाता है जो दिल की बीमारियों से उन्हें बचाता है।
महिलाओं को पीरियड्स 50 साल की उम्र में बंद हो जाते हैं जिसके बाद उनकी बॉडी में यह हॉर्मोन कम हो जाता है। यही वजह है कि महिलाओं में दिल की बीमारी बढ़ जाती है। डॉक्टर कहते हैं कि दिल की बीमारी का औसत आमतौर पर पुरुष और महिला में 3ः1 हो जाता है लेकिन मेनॉपॉज के बाद यह बराबर पर आ जाता है।
जान कैसे बचा सकते हैं
अगर किसी भी व्यक्ति को आपके सामने काड्रिएक अरेस्ट आता है तो उसके लिए शुरु के 10 मिनट बहुत अहम होते हैं। बचने की संभावना हर मिनट के साथ 10 प्रतिशत कम होती जाती है। मरीज के कपड़ाें को ढीला कर दें। अगर वह पहले से ही दिल का रोगी है और कोई दवा लेेता है ताे उसे दवा दें। उसके बाद ऐसे मरीज को किसी ठोस जगह पर लिटा दें। उसकी नाक और गला चेक करें कहीं कुछ अटक तो नहीं गया है।
हथेली से छाती पर दबाव डालकर मुंह से कृत्रिम सांस देना मरीज की जान बचाने में सहायक होता है। मरीज के सीने के बीचों-बीच हथेली रखकर पंपिंग करते हुए 2-3 बार ऐसा करने से धड़कन फिर से शुरु होने की संभावना बन जाती है। प्रति मिनट में 100 बार दबाना होता है। इसके साथ ही मरीज की नाक को दो उंगलियो से दबाकर मुंह से सांस दें। नाक बंद होगी तो मुंह से दी गई सांस फेफड़ों तक पहुंचती है। इस तकनीक से 50 फीसदी लोगों की जान बचाई जा सकती है।