नई दिल्ली : राज्य सभा के सभापति और उपराष्ट्रपति वेंकैया नायडू द्वारा चीफ जस्टिस दीपक मिश्रा के खिलाफ विपक्ष के महाभियोग को खारिज होने के बाद कांग्रेस इसके विरोध में सुप्रीम कोर्ट में अपील करने वाली है लेकिन, इस मामले में काफी पेच फंसा हुआ है। अगर विपक्ष नायडू के फैसले के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का रुख करता भी है तो इसे सुनेगा कौन? पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के कार्यकाल के दौरान ऑटर्नी जनरल रहे वरिष्ठ वकील और राज्य सभा के सदस्य एमपी पराशरन का कहना है कि उपराष्ट्रपति द्वारा महाभियोग प्रस्ताव खारिज होने के बाद इसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती नहीं दी जा सकती है।
कपिल सिब्बल ने कहा कि राज्यसभा के सभापति वेंकैया नायडू ने मामले पर जल्दबाजी दिखाई है। हम उस पर भी चिंतित है। जांच के बाद ही आरोपों की सत्यता का पता लग सकता था। हम लोग सुप्रीम कोर्ट में इस फैसले को चुनौती देंगे। मुझे पूरा पूरा भरोसा है कि प्रधान न्यायाधीश का इसमें कोई हस्तक्षेप नहीं होगा। ताकि पारदर्शी तरीके से सुनवाई हो सके।
उन्होंने यह भी आरोप लगाया कि सरकार नहीं चाहती कि इसकी जांच हो. सरकार जांच को दबाना चाहती है। सरकार का रुख न्यायपालिका को नुकसान पहुंचाने वाला है. उन्होंने कहा कि सभापति नायडू के फैसले से लोगों का विश्वास चकनाचूर हुआ है। उन्होंने कहा, ‘हम उच्चतम न्यायालय में याचिका दायर करेंगे. हमें भरोसा है कि जब याचिका दायर होगी तो इससे प्रधान न्यायाधीश का कुछ लेनादेना नहीं होगा।’
सिब्बल ने कहा कि 64 सांसदों ने सोच-विचार करके महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस दिया था और इसमें प्रधान न्यायाधीश के खिलाफ जिन आरोपों का उल्लेख किया गया था वो बहुत गंभीर है। ऐसे में राज्यसभा के सभापति को जांच समिति गठित करनी चाहिए थी और जांच पूरी होने के बाद कोई फैसला करते। कांग्रेस नेता ने यह भी कहा कि यह महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस किसी पार्टी की तरफ से नहीं, राज्यसभा के 64 सदस्यों की ओर से दिया गया था। आगे इन सदस्यों की ओर से ही शीर्ष अदालत में अपील दायर की जाएगी।
इससे पहले कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सुरजेवाला ने नायडू के फैसले पर सवाल खड़ा करते हुए कहा, ‘महाभियोग की संवैधानिक प्रक्रिया 50 सांसदों (राज्यसभा में) की ओर से प्रस्ताव (नोटिस) दिये जाने के साथ ही शुरू हो जाती है। राज्यसभा के सभापति प्रस्ताव पर निर्णय नहीं ले सकते, उन्हें प्रस्ताव के गुण-दोष पर फैसला करने का अधिकार नहीं है। यह वास्तव में ‘लोकतंत्र को खारिज’ करने वालों और ‘लोकतंत्र को बचाने वालों’ के बीच की लड़ाई है।’
गौरतलब है कि कांग्रेस सहित सात दलों ने न्यायमूर्ति मिश्रा को हटाने के लिए महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस बीते शुक्रवार को नायडू को दिया था। नोटिस में न्यायमूर्ति मिश्रा के खिलाफ ‘कदाचार’ और ‘पद के दुरुपयोग’ का आरोप लगाया गया था।
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